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________________ एस धम्मो सनंतनो भी नहीं। अब तो मेरे भीतर मैं भी नहीं। अब तो जंजीरें टूट गयीं। अब तो मैं मुक्त हूं। लेकिन भिक्षुओं को यह बात सुनकर जंची नहीं। जंची इसलिए भी नहीं कि कोई पसंद नहीं करता यह कि हमसे पहले कोई दूसरा मुक्त हो जाए। हमसे पहले-और यह नंगलकुल हो गया? यह तो गया-बीता था; आखिरी था। इसको तो लोग जानते थे कि है यह गांव का गरीब। यहीं खेती-बाड़ी करता रहा। फिर संन्यासी भी हो गया, तो कोई बड़ा संन्यासी भी...। वह नंगलकुल! बार-बार जाए दर्शन को। और किसी चीज के दर्शन न करे, नंगल के दर्शन करे। यह-और ज्ञान को उपलब्ध हो जाए? यह कभी नहीं हो सकता। उन्होंने जाकर भगवान को कहाः भंते! यह नंगलकुल झूठ बोलता है। यह अर्हत्व-प्राप्ति की घोषणा करता है। कहता है, मैं मुक्त हो गया हूं। __ लेकिन जो औरों को नहीं दिखायी पड़ता, वह सदगुरु को तो दिखायी पड़ेगा। तुम्हें दिखायी पड़ेगा, उसके पहले सदगुरु को दिखायी पड़ेगा। बुद्ध ने करुणा से उन भिक्षुओं की ओर देखा। करुणा से क्योंकि वे ईर्ष्यावश ऐसा कह रहे हैं। करुणा से क्योंकि राजनीति प्रवेश कर रही है उनके मन में। करुणा से क्योंकि उनके अहंकार को चोट लग रही है। कोई वर्षों से संन्यासी था। कोई बड़ा पंडित था। कोई बड़ा ज्ञानी था। कोई बड़े कुल से था, राजपुत्र था। इनको नहीं मिला और नंगलकुल को मिल गया? वह तो अछूत था; आखिरी था। बुद्ध ने कहा ः भिक्षुओ! मेरा पुत्र अपने आपको उपदेश दे प्रवजित होने के कृत्य को पूर्ण कर लिया। - इसने यद्यपि किसी और से उपदेश ग्रहण नहीं किया, लेकिन अपने आपको रोज-रोज उपदेश देता रहा। जब-जब गया उस वृक्ष के पास, अपने को उपदेश दिया। ऐसे धार पड़ती रही, पड़ती रही। अपने को ही जगाया अपने हाथों से। यह बड़ा अदभुत है नंगलकुल। इसकी महत्ता यही है कि इसने धीरे-धीरे करके अपने को स्वयं अपने हाथों से उठा लिया है। यह बड़ी कठिन बात है। लोग दूसरे के उठाए-उठाए भी नहीं उठते हैं! उसे जो पाना था, उसने पा लिया। और जो छोड़ना था, वह छोड़ दिया। तब बुद्ध ने ये गाथाएं कहीं अत्तना चोदय'तानं पटिवासे अत्तमत्तना। सो अत्तगुत्तो सतिमा सुखं भिक्खु विहाहिसि ।। 'जो आप ही अपने को प्रेरित करेगा, जो आप ही अपने को संलग्न करेगा, वह आत्म-गुप्त स्मृतिवान भिक्षु सुख से विहार करेगा।' 102
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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