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________________ विराट की अभीप्सा पता लगाया होगा। पता चला होगाः सब था इसके पास। सब छोड़ दिया। इसको विचार उठने लगे होंगे कि मेरे पास कुछ भी नहीं है। यह एक हल है; यह नंगल। बस यही मेरी संपत्ति है। और मेरे पास है क्या छोड़ने को! मैं भी क्यों न इस आदमी की छाया बन जाऊं? मैं भी क्यों न इसके पीछे चल पडूं? एकाध बूंद शायद मेरे हाथ भी लग जाए-जो इसका सागर है उसकी। और जब इतने लोग इसके पीछे चल रहे हैं और पा रहे हैं...। माना कि मैं अभागा हूं, लेकिन फिर भी शायद कुछ हाथ लग जाए। धीरे-धीरे रस लगा होगा; राग लगा होगा। धन्यभागी हैं वे, जिनका बुद्धों से राग लग जाए; जिनको बुद्धों से प्रेम हो जाए। क्योंकि उनके जीवन का द्वार खुलने के करीब है। तो एक दिन संन्यस्त हो गया। किंतु संन्यस्त होते समय उसने अपने हल-नंगल को विहार के पास ही एक वृक्ष पर टांग दिया। सोचा होगा कि क्या भरोसा; अनजान रास्ते पर जाता हूं-जंचे, न जंचे! आज उत्साह में, उमंग में हूं, कल पता चले कि सब फिजूल की बकवास है, तो अपना नंगल तो सम्हालकर रख दो। कभी जरूरत पड़ी, तो फिर लौट आएंगे। रास्ता कायम रखा लौटने का कि कभी अड़चन आ जाए, तो ऐसा नहीं कि सब खतम करके आ गए। फिर लौटना ही मुश्किल हो जाए। तो विहार के पास ही एक झाड़ पर ऊपर सम्हालकर अपने नंगल को रख दिया। यह प्रतीक है इस बात का ः इसी तरह हम अपने अतीत को सम्हालकर रखे रहते हैं। संन्यस्त भी हो जाते हैं, तो अतीत को सम्हालकर रखते हैं कि लौटने के सब सेतु न टूट जाएं। _ झेन फकीर रिझाई अपने गुरु के पास गया, तो गुरु ने पूछा : सुन! तू संन्यस्त होना चाहता है; पहले तीन-चार सवालों के जवाब दे दे। कहां से आता है? रिझाई ने कहाः जहां से आता हूं, वहां से बिलकुल आ गया हूं। इसलिए उस संबंध में कोई जवाब नहीं दूंगा। गुरु ने पूछा : छोड़। मुझे चावलों में बहुत रस है। वहां चावल के क्या दाम हैं, जहां से तू आता है? रिझाई ने कहा : सुनें! चावल के दाम जरूर वहां कुछ हैं; जरूर कुछ होंगे। लेकिन मैं वहां से आ गया हूं। और जहां से मैं आ गया हूं, वहां के चावलों के दाम मैं हिसाब में नहीं रखता; उसकी स्मृति नहीं रखता। गुरु ने कहा : एक बात और। किस रास्ते से आया? कहां-कहां होकर आया? रिझाई ने कहाः आप फिजूल की बातें पूछ रहे हैं। और मैं जानता हूं कि आप क्यों पूछ रहे हैं। आप मुझे भड़काएं मत। आप मुझे उत्तेजित न करें। लेकिन यह मेरा नियम रहा है कि जिस पुल से गुजर गए, उसे तोड़ दिया। जिस सीढ़ी को पार कर
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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