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________________ एस धम्मो सनंतनो मैंने उनसे कहाः वैराग्य! तुम गरीब घर के आदमी हो; तुम अपनी सीमा में रहो। तुम कोई भारतीय दुख खरीदो! तो वह आदमी बड़ा दुखी था। बुद्ध कहते हैं : दुखी होना ही आदमियत है। इसमें कारण मत खोजना कि यह कारण है, वह कारण है। आदमी जहां भी होगा, दुखी होगा। जब तक आदमी के पार न हो जाए, तब तक दुखी होगा। आदमियत कारण है। तो तुम दुख बदल ले सकते हो, मगर इससे कुछ फर्क न पड़ेगा। उस पर बुद्ध की ज्योति पड़ी। यह बुद्ध की ज्योति पड़ने का क्या मामला है? अपने खेत में चलाता होगा हल-बक्खर। बुद्ध वहां से रोज निकलते होंगे। वह . विहार के पास ही खेती-बाड़ी करता था। देखता होगा रोज बुद्ध को जाते। यह शांत प्रतिमा! यह प्रसादपूर्ण व्यक्तित्व! खड़ा हो जाता होगा कभी-कभी अपने हल को रोककर। दो क्षण आंख भरकर देख लेता होगा; फिर अपने हल में जुत जाता होगा। यह रोज होता रहा होगा। जैसे रसरी आवत-जात है, सिल पर परत निशान। पत्थर पर भी निशान पड़ जाता है, रस्सा आता रहे, जाता रहे। करत-करत अभ्यास के जड़-मति होत सुजान। रोज-रोज देखता होगा। फिर और ज्यादा-ज्यादा देखने लगा होगा। फिर बुद्ध जाते होंगे, तो पीछे दूर तक देखता रहता होगा, जब तक आंख से ओझल न हो जाएं। फिर धीरे-धीरे प्रतीक्षा करने लगा होगा कि आज अभी तक आए नहीं! कब आते होंगे! फिर किसी दिन न आते होंगे, तो तलब लगती होगी। लगता होगा कि आज आए नहीं! कभी ऐसा भी होता होगा कि बुद्ध होंगे बीमार; नहीं गए होंगे भिक्षा मांगने, तो शायद आश्रम पहुंच गया होगा! कि एक झलक वहां मिल जाए! फिर बुद्ध को देखते-देखते बुद्ध के और भिक्षु भी दिखायी पड़ने शुरू हुए होंगे। ये बुद्ध अकेले नहीं हैं; हजारों इनके भिक्षु हैं। और सब प्रफुल्लित मालूम होते हैं! सब आनंदित मालूम होते हैं! मैं ही एक दुख में पड़ा! मैं कब तक इस हल-बक्खर में ही जुता रहूंगा? ऐसे विचारों की तरंगें आने लगी होंगी। इन्हीं तरंगों में एक दिन बुद्ध की बंसी में फंस गया होगा। फिर उस पर बुद्ध की ज्योति पड़ी। एक दिन लगा होगा : मेरे पास है क्या! इस आदमी के पास सब था। राजमहल थे...। खोजबीन की होगी; पता लगाया होगा। यह आदमी कैसा! लगता इतना प्यारा और इतना सुंदर है, और है भिखारी! लगता है सम्राटों का सम्राट। चाल में इसकी सम्राट का भाव है। भाव-भंगिमा इसकी कुछ और है। यह होना चाहिए राजमहलों में; यह यहां क्या कर रहा है आदमी! 96
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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