SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो गए, उसे गिरा दिया। क्योंकि लौटना कहां है? लौटना है ही नहीं। आगे जाना है। ___तो गुरु ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि तू ठीक-ठीक संन्यस्त होने के योग्य है। मगर इतनी योग्यता तो कब होती है! बड़ी मुश्किल से होती है। जो अतीत को तोड़ देता है, वही संन्यासी है। जो अतीत में अपना घर नहीं रखता, वही गृहस्थ नहीं है। जो कहता है: जो गया, गया। अब तो जो है, है। जो यहां है और अभी है। ___ तो यह कथा-प्रतीक प्यारा है। कि गरीब आदमी; और तो कुछ था नहीं उसके पास। कोई तिजोड़ी नहीं थी। कोई बैंक-बैलेंस नहीं था। कुछ भी नहीं था। एक नंगल था, एक हल था। उसको रख आया कि कभी जरूरत पड़े, तो एकदम असहाय न हो जाऊं। __ अतीत से संबंध तोड़ना बड़ा कठिन है, चाहे अतीत में कुछ हो या न हो। न हो, तो छोड़ना और भी कठिन है। क्योंकि लगता है, गरीब आदमी हूं। यही तो एक संपदा है छोटी सी। यही चली गयी, तो फिर कुछ न बचेगा। अमीर तो शायद कुछ छोड़ भी दे, क्योंकि उसके पास और बहुत कुछ है। इतना छोड़ने से कुछ हर्जा नहीं है। ___ अमीर शायद धन भी छोड़ दे, क्योंकि वह जानता है : उसके परिवार के लोग भी धनी हैं। कल अगर लौटेगा, अपना धन नहीं होगा, तो भी अपने परिवार के लोगों का धन होगा। अमीर तो शायद सब छोड़ दे, क्योंकि उसकी प्रतिष्ठा भी है, क्रेडिट भी है। कल अगर लौटकर आएगा, तो प्रतिष्ठा से भी जी लेगा। उधार भी मिल जाएगा। __ लेकिन गरीब आदमी! उसके पास तो हल है। दो पैसे कोई देगा नहीं उधार। प्रतिष्ठा तो कोई है नहीं। परिवार तो कुछ है नहीं। जिनको अपना कह सके, ऐसा तो कोई है नहीं। यह एक नंगल ही बस सब कुछ है। तो उसको रख दिया उसने। यही इसका परिवार है; यही इसका धन है; यही इसकी सारी की सारी आत्मा है। उसने उसे सम्हालकर रख दिया। संन्यस्त हो कुछ दिन तक तो बड़ा प्रसन्न रहा। और फिर उदास हो गया। यह रोज घटता है। यह यहां भी घटता है। जब कोई आदमी संन्यस्त होता है, तो बड़ी आशाओं, उमंगों, उत्साहों से भरा होता है। लेकिन तुम्हारी आशा के अनुकूल ही थोड़े ही संसार चलता है। और तुम्हारी अपेक्षाएं थोड़े ही जरूरी रूप से पूरी होती हैं। फिर तुम अपेक्षाएं भी बहुत कर लेते हो। तुम अपेक्षाएं जरूरत से ज्यादा कर लेते हो। उन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए जितना श्रम करना चाहिए, वह तो करते नहीं। अपेक्षाएं अटकी रह जाती हैं; पूरी नहीं होतीं। जितना संकल्प चाहिए, वह तो होता नहीं। फिर धीरे-धीरे उदासी पकड़ती है। .. ___लोग सोचते हैं कि शायद संन्यस्त हो गए, तो सब हो गया। संन्यस्त होने से सिर्फ शुरुआत होती है यात्रा की। सब तो अभी होना है।
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy