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________________ विराट की अभीप्सा पाना था, उसने पा लिया है और जो छोड़ना था, छोड़ दिया है। वह निश्चय ही मुक्त हो गया है। तब उन्होंने ये दो सूत्र कहे : अत्तना चोदय' त्तानं पटिवासे अत्तमत्तना । सो अत्तगुत्तो सतिमा सुखं भिक्खु विहाहिसि । । अत्ता हि अत्तनो नाथो अत्ता हि अत्तनो गति । तस्मा सञ्ञमयत्तानं अस्सं भद्रं व वाणिजो || 'जो आप ही अपने को प्रेरित करेगा, जो आप ही अपने को संलग्न करेगा, वह आत्म- गुप्त - अपने द्वारा रक्षित - स्मृतिवान भिक्षु सुख से विहार करेगा । वह मुक्त हो जाता है । ' 'मनुष्य अपना स्वामी आप है; आप ही अपनी गति है। इसलिए अपने को संयमी बनावे, जैसे सुंदर घोड़े को बनिया संयत करता है । ' पहले दृश्य को समझ लें। प्यारा दृश्य है। एक निर्धन आदमी बुद्ध के विहार के पास ही अपना हल चलाकर छोटी-मोटी खेती-बाड़ी करता था। निर्धन था बहुत । किसी भांति जीवन-यापन होता था । दो सूखी रोटी मिल जाती थी। फटे-पुराने वस्त्र; नंगा नहीं था । रूखी-सूखी रोटी; भूखा नहीं था। मगर जीवन में और कुछ भी न था । एक गहन बोझ की तरह जीवन को ढो रहा था । वह अत्यंत दुखी था, जैसे कि सभी प्राणी दुखी हैं। गरीब दुखी हैं, गरीबी के कारण नहीं। क्योंकि अमीर भी दुखी हैं ! जो हार गए, वे दुखी हैं; हारने के कारण नहीं। क्योंकि जो जीत गए, वे भी दुखी हैं। बुद्ध कहते हैं : यहां सभी दुखी हैं। मनुष्य होने में ही दुख समाया हुआ है। इसलिए तुम झूठे कारणों पर मत अटक जाना। तुम यह मत कहना कि मैं गरीब हूं, इसलिए दुखी हूं। यही तो भ्रांति है । तो जो आदमी सोचता है : मैं गरीब हूं, इसलिए दुखी हूं, तो वह अमीर होने में लग जाता है । फिर अमीर होकर एक दिन पाता है कि जिंदगी अमीर होने में बीत गयी और दुखी मैं उतना का उतना हूं; शायद थोड़ा ज्यादा हों गया हूं। क्योंकि गरीब आदमी ज्यादा दुख भी नहीं खरीद सकता। गरीब की हैसियत कितनी ! अमीर आदमी ज्यादा दुख खरीद सकता है । उसकी हैसियत ज्यादा है। गरीब आदमी की... दुख में भी तो क्षमता होती है न! अब एक आदमी गरीब है, तो बैलगाड़ी में चलेगा। हवाई जहाज में उड़ने का दुख नहीं जान सकता । कैसे जानेगा? वह तो कोई हवाई जहाज में उड़े तब ... ! 93
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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