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विराट की अभीप्सा
प्रीति और प्रमोदरूपी अमृत को प्राप्त करता है। ___ और जब देने की कला आ जाती है, और देने की क्षमता आ जाती है, तो सुख है। सुख देने में है, लेने में नहीं।
तुमने भी कभी-कभी जीवन में निरीक्षण किया होगा इस बात का कि जब तुम देते हो, तब एक तरह का सुख मिलता है। कुछ भी, थोड़ा सा भी दे दो। और जब तुम लेते हो, तब पीछे थोड़ी सी ग्लानि होती है। लेने में तुम दीन हो जाते हो। ___इसलिए एक बात जानना : अगर तुम किसी को कुछ दो, तो खयाल रखना, वह तुम्हें कभी क्षमा नहीं कर पाएगा। वह तुमसे बदला लेगा। इसलिए अक्सर होता है, लोग कहते हैं: हमने तो नेकी की; हमें बदले में बदी मिली। इसमें राज है। इसलिए ज्ञानियों ने कहा, नेकी कर और कुएं में डाल। फिर उसको बिलकुल भूल ही जा। उसकी याद ही मत दिलाना, नहीं तो जिस आदमी के साथ नेकी की है, वही तेरी गरदन काटेगा। क्योंकि उसको तने दीन कर दिया। ___ एक आदमी आया। तुमने उसे सौ रुपए दे दिए। और तुम्हारे मन में बड़ा नेकी का भाव उठा कि देखो, कितना गजब का काम कर रहे हैं! इसको सौ रुपए दे रहे हैं! तुम तो गजब काम कर रहे हो, उस आदमी पर क्या गुजर रही है? वह यह देख रहा है कि अच्छा, कभी मौका मिला, तो देख लेंगे। तुम ऐसे अकड़े जा रहे! ऐसे फूले जा रहे हो! आज हम मुसीबत में हैं, ठीक है। हाथ फैलाने पड़े तुम्हारे सामने, ठीक है।
वह सदा प्रार्थना करेगा कि कभी ऐसा दिन आए कि तुम भी हमारे सामने हाथ फैलाओ। तभी वह तुम्हें क्षमा कर पाएगा। नहीं तो क्षमा नहीं कर पाएगा। वह तुम्हारा दुश्मन हो गया। तुमने एक दुश्मन बना लिया।
देना इस ढंग से कि लेने वाले को पीड़ा न हो। तो ही...। नहीं तो तुम क्षमा नहीं किए जा सकोगे। देना इस ढंग से कि लेने वाले को पता न चले। इसलिए गुप्त-दान की महिमा है। देना इस ढंग से कि लेने वाले को यह खयाल ही न हो कि देने वाला वहां अकड़कर खड़ा था और देने में मजा ले रहा था।
· देना विनम्रता से। देना झुक कर। हाथ तुम्हारा नीचा हो, इस ढंग से देना। लेने वाले का हाथ ऊपर रहे, इस ढंग से देना। ताकि लेने वाले को ऐसा लगे कि लेकर उसने तुम पर कृपा की है, अनुग्रह किया है। फिर तुम्हारे लिए कभी नेकी के बदले में बदी नहीं मिलेगी।
जिसके भीतर देने की पात्रता आ जाती है, पात्र भर जाता है प्रेम से, उसी के भीतर प्रमोद होता है। प्रमोद है देने का आनंद। सबसे बड़ा आनंद है इस जगत में, देने का आनंद। और सबसे बड़ी देने की चीज है इस जगत में ध्यान। नंबर दो पर प्रेम। ये दो बड़ी से बड़ी संपदाएं हैं-ध्यान की और प्रेम की। ___'जो सेवा-सत्कार स्वभाव वाला है और आचार-कुशल है, वह आनंद से ओतप्रोत होकर दुख का अंत करेगा।'
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