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________________ एस धम्मो सनंतनो हैझान । जब झान चीन पहुंचा, तो हो गया चान। और जब चीन से जापान पहुंचा, तो हो गया झेन । मगर ध्यान का ही रूपांतरण है। सबसे बड़े ध्यानी शिष्य थे महाकाश्यप । अलग-अलग शिष्य थे, अलग-अलग गुणवत्ताएं थीं। महाकाश्यप की गुणवत्ता एक थी कि उनका ध्यान अदभुत था; उनका ध्यान निर्मलतम था; उनका ध्यान शुद्धतम था । वे पारस पत्थर थे। जो उनके पास आ जाता, सोना हो जाता; ध्यानी हो जाता। जब बुद्ध ने इस युवक को महाकाश्यप को सौंपा था कि सम्हालो इंसे, इसी में सूचना है कि इस युवक की बड़ी संभावनाएं थीं। यह समाधिस्थ हो सकता था, तभी बुद्ध ने सौंपा था। और शायद तीव्रता से बढ़ा होगा ध्यान में; गति से गया होगा । जगति से जाता है, उसके गिरने की संभावना भी ज्यादा होती है। जो धीरे-धीरे जाता है, वह सम्हल - सम्हलकर जाता है। एक-एक कदम, धीरे-धीरे, मजबूत करके जाता है। जो धीरे-धीरे जाता है, उसके गिरने की संभावना कम होती है। देर से पहुंचता है। जो जल्दी जाता है, वह जल्दी पहुंच सकता है, लेकिन बहुत खतरा यह है कि वह जल्दी ही गिर भी जाए। जिस समय जल्लाद उसे मारने ले जा रहे थे, महाकाश्यप भिक्षा मांगने निकले थे । महाकाश्यप ने देखा : जल्लाद उसे जंजीरों में बांधे वधस्थल की तरफ ले जा रहे हैं। वह तो उन्हें भूल ही चुका था। वह भूलता नहीं, तो चूकता ही क्यों ? जिसको एक साधारण सी स्त्री में ज्यादा सौंदर्य दिखायी पड़ा महाकाश्यप की बजाय, वह उसी क्षण भूल गया । वह उसी क्षण चूक गया। कहां महाकाश्यप का सौंदर्य । सदियों से लोग, जिन्होंने ध्यान साधा है, महाकाश्यप की याद करते हैं। आज तो बीते ढाई हजार साल हो गए। लेकिन अब भी चीन में, जापान में, थाईलैंड में, बर्मा में – जहां-जहां बौद्धों की अभी भी परंपरा जीवित है— लोग पूछते हैं महाकाश्यप के संबंध में । अब भी विचार करते हैं, अब भी पूछते हैं : महाकाश्यप को बुद्ध ने क्या दिया था ? ढाई हजार साल में भी यह प्रश्न अभी जीवंत है कि महाकाश्यप को जो फूल दिया था, उसमें क्या दिया था ? महाकाश्यप को क्या दिया था बिना शब्दों के ? जो किसी को नहीं दिया, वह महाकाश्यप को दिया था; तो उसका अर्थ हुआ : असली ची महाकाश्यप को मिली। औरों के हाथ शब्द लगे, सिद्धांत लगे, ज्ञान लगा । महाकाश्यप के हाथ ध्यान लगा । और ध्यान तो आखिरी संपदा है | क्या दिया था महाकाश्यप को ? महाकाश्यप उज्ज्वलतम शिष्य हैं बुद्ध के । महाकाश्यप दूसरे बुद्ध हैं बुद्ध की परंपरा में। और इस युवक को महाकाश्यप में सौंदर्य न दिखायी पड़ा ! और एक स्त्री में सौंदर्य दिखायी पड़ा ! मूल कथा में जो बात कही है, वह मैंने छोड़ दी है। 80
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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