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________________ .. तृष्णा को समझो के आने तक इस बात का पता नहीं था कि बच्चे संभोग से पैदा होते हैं। क्योंकि नौ महीने का वक्त निकल जाता है। उनके पास समय को नापने का कोई माध्यम नहीं। उनको पता ही नहीं था कि बच्चे संभोग से पैदा होते हैं। फिर हर संभोग से बच्चा पैदा होता भी नहीं। फिर बच्चा तो आज प्रवेश करेगा गर्भ में, पैदा तो नौ महीने बाद होगा। नौ महीने का हिसाब! नौ महीने बाद! तो बात ही भूल गयी। __ वे आदिम जातियां ऐसा ही मानती रही हैं सदियों से कि परमात्मा की देन है बच्चा; इसका संभोग से कुछ लेना-देना नहीं! जब पहली दफे उन्हें यह कहा गया, तो उन्हें भरोसा ही न आया। उन्हें बड़ी कठिनाई हुई। ऐसी ही हमारी जीवन-दशा है। तुमने कभी कोई काम किया था; दस साल बीत गए। तुम भूल-भाल चुके। और बुरे काम हम जल्दी भूल जाते हैं। बुरे काम कौन याद रखना चाहता है। क्योंकि बुरे काम को याद रखने से भी कांटा चुभता है। मन को पीड़ा होती है। बुरे काम को तो हम पोंछ देना चाहते हैं; दूर अंधेरे में फेंक देते हैं। अचेतन की गर्त में डाल देते हैं। ... तो हर आदमी ने अपने मन के नीचे गहरे में तलघरा बना रखा है, वहां हम फेंकते जाते हैं। जो भी हमें नहीं जंचता कि करना था, नहीं करना था; ठीक नहीं हुआ; हो गया किसी तरह; उसे हम उस तलघरे में डालते जाते हैं। उस तलघरे में सब तरह के सांप-बिच्छू, सब तरह के जहर इकट्ठे होते रहते हैं। एक न एक दिन वे निकलेंगे। एक न एक दिन उठेगा धुआं। एक न एक दिन तुम्हारे बैठकखाने में धुआं भरेगा; तब तुम बड़े हैरान होओगे कि यह कहां से आता है! जब तुम्हें दुख झेलने पड़ते हैं, तब तुम सोचते भी नहीं कि तुमने कभी बीज बोए थे इनके। कर्म के सिद्धांत का बस, इतना ही अर्थ है कि जो तुमने पाया है आज, वह . कभी किया था। और जो तुम आज कर रहे हो, वह कभी पाओगे। चोरी करते वह युवक रंगे हाथ पकड़ा गया। राजा ने उसे प्राणदंड की आज्ञा दी। जिस समय जल्लाद उसे मारने को ले जा रहे थे, उस समय भिक्षाटन के लिए जाते हुए महाकाश्यप स्थविर ने देखा। __ बुद्ध की ऐसी व्यवस्था थी; उनके हजारों संन्यासी थे। स्वभावतः, इसके अतिरिक्त और कोई उपाय न था कि प्रत्येक नया युवक, नया संन्यासी, नया दीक्षित, किसी पुराने दीक्षित संन्यासी का शिष्य बन जाता था। बुद्ध दीक्षा देते थे, लेकिन उसे सौंप देते थे किसी को। ___ यह युवक महाकाश्यप को सौंपा गया था। बुद्ध ने जब इसे महाकाश्यप को सौंपा था, इसका अर्थ ही साफ है कि इसमें बड़ी संभावना दिखी होगी ध्यान की। महाकाश्यप सबसे बड़े ध्यानी शिष्य थे बुद्ध के। इसीलिए तो झेन संप्रदाय का जन्म उनसे हुआ। झेन ध्यान शब्द का ही रूपांतरण है। ध्यान है संस्कृत। पाली में ध्यान हो जाता 79
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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