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________________ तृष्णा को समझो पहुंच जाए। बुझा दीया कोई जले दीए के करीब ले आए। एक क्षण आता है, जब छलांग लग जाती है। दोनों दीए जल उठते हैं। जो जल रहा था दीया, उसका तो कुछ भी नहीं खोता; जो बुझा था, उसे सब कुछ मिल जाता है। __ बुद्ध के पास से कुछ भी नहीं गया और महाकाश्यप को सब मिल गया! फिर इसी ढंग से झेन एक गुरु के द्वारा दूसरे गुरु को दिया गया है। महाकाश्यप का एक शिष्य ध्यान में अच्छी कुशलता पाकर भी...। ध्यान रखना ः ध्यान में अच्छी कुशलता पाकर भी पतन हो जाता है। जब तक ध्यान समाधि न बन जाए, तब तक पतन की संभावना है। सच तो यह है कि जैसे-जैसे ध्यान गहरा होगा, वैसे-वैसे पतन की संभावना बढ़ती है। तुम कहोगेः यह तो बात उलटी हुई! यह बात उलटी नहीं है। जैसे-जैसे तम पहाड़ की चोटी के करीब पहंचने लगते हो, वैसे-वैसे गिरने का खतरा बढ़ता है। रास्ते संकरे होने लगते हैं। ऊंचाई तुम्हारी बढ़ गयी होती है; खाई-खड्ड गहरे होने लगते हैं। क्योंकि जितने तुम ऊंचे होते हो, उतनी खाई गहरी होती है। जरा फिसले कि गिरे। और जरा फिसले, तो बुरी तरह गिरे। जितनी ऊंचाई से गिरोगे, उतनी भयंकर चोट होगी। कोई सीधे-सपाट रास्ते पर गिर जाता है, तो उठकर खड़ा हो जाता है। लेकिन कोई पहाड़ की ऊंचाई से गिरता है, तो शायद समाप्त ही हो जाए! उठकर खड़े होने की क्षमता ही न बचे! हड्डी-पसलियां टूट जाएं। या प्राणांत ही हो जाए। तब तक खतरा रहता है, जब तक कि तुम पहाड़ के शिखर पर पहुंचकर बैठ नहीं गए। उस पहाड़ के शिखर पर बैठ जाने का नाम समाधि। समतल भूमि से शिखर तक पहुंचने के बीच का मार्ग ध्यान। और जैसे-जैसे ध्यान बढ़ता है, वैसे-वैसे खतरा बढ़ता है। तो मत सोचना मन में ऐसा कि ध्यान में अच्छी कुशलता पाकर और पतित हो गया! तभी कोई पतित होता है। . तुम तो पतित हो ही नहीं सकते। तुम्हारे पतित होने का अर्थ क्या होगा? तुमने कभी भोगभ्रष्ट ऐसा शब्द सुना? योगभ्रष्ट शब्द सुना होगा। भोगभ्रष्ट तो कोई होता ही नहीं! भोग में तो जो है, वह भ्रष्ट है ही। वह तो खाई-खड्ड में जी ही रहा है। और गिरने का उपाय नहीं है। ___ तुमने नर्क से किसी को गिरते सुना? और कहां गिरोगे? और गिरने को जगह कहां है? स्थान कहां है ? आखिरी जगह तो पहले ही पहुंच गए! स्वर्ग से लोग गिरते हैं; नर्क से नहीं गिरते। जिन्हें गिरने से डर लगता हो, उन्हें नर्क जाना चाहिए। नर्क में बड़ी सुविधा है, बड़ी सुरक्षा है। वहां कोई गिरता ही नहीं! वहां से कभी कोई भ्रष्ट नहीं होता। स्वर्ग में खतरा है। जैसे-जैसे ऊंचे बढ़े, खतरा बढ़ा। जितनी ऊंचाई आयी, 75
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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