SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो सब तरह समर्पित होता! न कोई योजना होती; न कोई भविष्य होता; न कोई अतीत होता। यह क्षण काफी होता। यह क्षण अपने में पूरा होता। ___ इस विहार के बाद एक दिन दीया बुझ जाता; बाती भी जल गयी; तब निर्वाण। तब कहां जाता व्यक्ति? तब महाशून्य में लीन हो जाता। जिस मूलस्रोत से आया था, उस मूलस्रोत में गिर जाता है। जैसे बादल समुद्र से उठते, फिर हिमालय पर बरसते। फिर गंगा बनते। फिर जाकर सागर में गिर जाते हैं। वहीं, जहां से हम आते हैं, वापस पहुंच जाते हैं; वही अस्तित्व का सागर-उसे परमात्मा कहो, कहना चाहो तो; मोक्ष कहो, निर्वाण कहो-जो मर्जी हो। लेकिन एक बात खयाल में रहे कि अंततः मूलस्रोत में गिर जाने में ही परम शांति है। जब तक हम अपने मूलस्रोत से न मिल जाएं, तब तक बेचैनी रहेगी। हम अपने घर से दूर-दूर, भटके-भटके, अजनबी रास्तों पर, अजनबी लोगों के बीच...। जब हम वापस घर लौट आए, तो विश्राम। भगवान वेणुवन में विहार करते थे। उनके अग्रणी शिष्य महाकाश्यप स्थविर का एक शिष्य ध्यान में अच्छी कुशलता पाकर भी एक स्त्री के सौंदर्य को देखकर चीवर छोड़कर गृहस्थ हो गया! __ महाकाश्यप-बुद्ध के श्रेष्ठतम शिष्यों में एक; श्रेष्ठतम भी कहो, तो भी चूक न होगी, तो भी अतिशयोक्ति न होगी। महाकाश्यप से ही झेन संप्रदाय का जन्म हुआ। और इस छोटे से दृश्य में भी तुम झेन संप्रदाय का रस पाओगे, स्वाद पाओगे, उसकी पहली झलक पाओगे। ___मैंने तुम से बहुत बार झेन के जन्म की कथा कही है : कि एक सुबह बुद्ध फूल लेकर आए-कमल का फूल-और बैठकर उस फूल को देखते रहे! प्रवचन सुनने भिक्षु इकट्ठे हुए थे। लेकिन वे कुछ बोले नहीं। एकटक फूल को ही देखते रहे। सन्नाटा छा गया। लोग बड़े जिज्ञासु होकर बैठे थे सुनने को। और बुद्ध बोले नहीं बोले नहीं-बोले नहीं। फिर बेचैनी होने लगी। लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लगे कि मामला क्या है? ऐसा कभी नहीं हुआ था कि बुद्ध चुप रहे हों। बोलने आए थे, तो बोले थे कुछ। आज क्या हुआ है? लोगों की यह बेचैनी, और एक-दूसरे की तरफ देखना, और इशारे करना देखकर महाकाश्यप जोर से हंसने लगा। उसकी हंसी...। बुद्ध ने आंखें ऊपर उठायीं; महाकाश्यप को पास बुलाया; और फूल महाकाश्यप को भेंट दे दिया। और कहाः महाकाश्यप! तुझे मैं वह देता हूं, जो वाणी से नहीं दिया जा सकता। इन शेष सब को मैंने वह दिया, जो वाणी से दिया जा सकता है। तुझे वह देता हूं, जो अव्याख्य है, जो वाणी से परे है। यह फूल सम्हाल। यह प्रतीक है। यह तेरी संपदा। यह झेन संप्रदाय का जन्म था-वाणी के परे, शास्त्र के परे। कोई नहीं जानता बुद्ध ने क्या दिया! बुद्ध ने बुद्धत्व दिया। जैसे एक दीए की ज्योति दूसरे बुझे दीए पर 74
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy