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तृष्णा को समझो
हो। दो मील तक पैडल मारकर साइकिल चलायी, फिर तुम पैडल चलाना बंद कर दिए। तो भी फर्लाग दो फर्लाग साइकिल पुरानी गति के आधार पर चल जाएगी, पैडल बिना मारे चल जाएगी। ऐसी ही घटना घटती है विहार में। __जब कोई व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाता है, तो उसने पैडल मारने बंद कर दिए। लेकिन जन्मों-जन्मों पैडल मारे हैं, तो जन्मों-जन्मों की जो संचित शक्ति है, वह अपने आप काम करती रहती है कुछ वर्षों तक; कुछ फागों तक वह व्यक्ति और भी जीता चला जाता है। लेकिन जीने में अब उसकी कोई इच्छा नहीं।
और ऐसा भी मत समझना कि उसकी मरने में कोई इच्छा है! न तो जीने में कोई इच्छा है, न मरने में कोई इच्छा है। तुम कहोगे: जब जीने में कोई इच्छा नहीं, तो मर क्यों नहीं जाता? उसकी इच्छा ही कोई नहीं; चुनाव ही कोई नहीं। जीए तो ठीक; मरे तो ठीक। जो हो, वही ठीक। उसका अपना कोई संकल्प नहीं। ऐसा हो, ऐसा ठीक। वैसा हो, वैसा ठीक। मौत आ जाए तो स्वागत। जीवन चलता रहे तो स्वागत। भीतर कोई अपेक्षा नहीं। . . ऐसी चित्तदशा में जो आदमी जीता है, उसके जीवन का नाम विहार। यह अपूर्व घटना है। यह ऐसी घटना है, जो कभी-कभी घटती है। इसलिए तो एक प्रांत का नाम ही विहार पड़ गया। बुद्ध वहां जीए। इस ढंग से जीए। उस याद में प्रांत का नाम विहार पड़ गया। उन्हीं गांवों में, उन्हीं रास्तों पर बुद्ध ऐसे जीए कि जब जीने का कोई कारण न रह गया था; जैसे वासना का सब तेल चुक गया, फिर भी बाती थोड़ी देर जलती है। बाती ही जलती है; अब तेल नहीं बचा। वासना का तेल समाप्त हो गया; अब दीए की बाती ही जलती है। पहले तो आग ने जला दिया तेल को अब आग जलाती बाती को।
और यह प्रतीक बुद्ध के संदर्भ में और भी सार्थक है। क्योंकि बुद्ध ने परम दशा को निर्वाण कहा। निर्वाण का अर्थ होता है : दीप का बुझ जाना।
दीप में जब तक तेल है वासना का, तब तक जीवन दुख है, तब तक जीवन नरक है। तब तक जीवन जलन है—घाव और पीड़ाएं और हजार संताप और चिंताएं! जब तृष्णा का तेल चुक गया, तो जीवन एक परम शांति है। अब बाती जल रही है। जल्दी ही बाती भी बुझ जाएगी। बाती कितनी देर जलेगी? बाती तो तेल से जलती है; जब तेल समाप्त हुआ और बाती जलने लगी, तो अब ज्यादा देर न जलेगी। फिर जब बाती भी जलकर शांत हो जाएगी, तो उस स्थिति को कहते हैं : दीए का निर्वाण।
बुद्ध ने कहा : ऐसे ही जीवन की वासना का तेल चुक जाता है, फिर आदमी थोड़े दिन जीता है—वह विहार।
विहार प्रीतिकर शब्द है। आनंदमग्न दशा में जीता-विहरता! चलता नहीं, फिर भी चलता। धारा के साथ बहता। जीवन से कोई विरोध, संघर्ष नहीं रह जाता।
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