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________________ धम्मपद का पुनर्जन्म सख पाना है-यह सच है। लेकिन सुख पाने से नहीं पाया जा सकता। सुख परोक्ष आता है, प्रत्यक्ष नहीं। यह सुख की कीमिया ठीक से समझ लो।। सुख पाना है—यह स्वाभाविक है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति सुख पाने में लगा है। लेकिन शायद ही कभी कोई इस बात को समझ पाता है कि मैं दुखी क्यों हूं! सुख तो पाने के लिए दौड़ता है, लेकिन दुखी क्यों हूं? और जब तक मैं दुखी होने के कारणों को नहीं बदलता, तब तक मैं कितना ही दौडूं, मैं सुख न पा सकूँगा। ___ मैंने सुना है : एक कौवा एक दिन उड़ा जा रहा था। और एक कोयल ने पूछा कि चाचा! कहां जा रहे हो बड़ी तेजी में! उसने कहा : मैं पूरब जा रहा हूं, क्योंकि पश्चिम में लोग मेरे गीतों को पसंद नहीं करते। उस कोयल ने कहा ः चाचा! मगर गीत यही गाए पूरब में, तो वहां भी कोई पसंद न करेगा। ये गीत ही आपके ऐसे गजब के हैं! बजाय पूरब जाने के, आप अपने गीत के ढंग बदलो। __ लोग सुख खोज रहे हैं और लोग दुख पैदा कर रहे हैं! सारी ऊर्जा दुख पैदा करने में लगी है और मन का एक छोटा सा हिस्सा सुख खोजने में लगा है! यह नहीं हो सकता है। यह कैसे होगा? ____ तुम्हारा पूरा जीवन दुख निर्मित करने में लगा है। समझो। ज्यादा उचित यही होगा कि तुम दुख क्यों पैदा हो रहा है, इसकी खोज में लगो। इसकी खोज ही तुम्हें उस जगह ले आएगी, जहां सुख फलता है। दुख न हो, तो सुख हो जाता है। और अभी तुम अगर कभी थोड़ा-बहुत सुख पा भी लिए; ज्यादा देर टिकेगा नहीं। दुख के सागर में सुख बूंदों जैसा होगा, बबूलों जैसा होगा-अभी हुआ, अभी मिटा। और तुम्हें और भी दुखी कर जाएगा। यह तुमने खंयाल किया कि सुख के बाद दुख और भी सघन हो जाता है। जैसे रास्ते पर अंधेरे में जा रहे हैं, कुछ-कुछ दिखायी पड़ रहा है। अमावस सही, लेकिन कुछ-कुछ दिखायी पड़ रहा है। किसी तरह चले जा रहे हो। फिर एक तेज-तर्रार कार गुजर जाती है पास से। उसके तेज प्रकाश में तुम्हारी आंखें चौंधिया जाती हैं। कार चली गयी, फिर तुम्हें कुछ नहीं दिखायी पड़ता। जो पहले दिखायी पड़ता था, वह भी नहीं दिखायी पड़ता। घड़ीभर को तो तुम एकदम अंधे हो जाते हो। ऐसा ही होता है। जीवन में दुख है, सुख कभी-कभी कौंध जाता है। उसके बाद और दुखी हो जाते हो। तुमने फर्क देखा! एक भिखारी सड़क पर बैठा। यह भिखारी ही है। यह सदा से भिखारी है। तुम्हें लगता है, बहुत दुखी है। तुम गलती में हो। तुम्हें जो लगता है, यह बहुत दुखी है, वह इसीलिए लगता है कि तुम सोचते होः अगर मुझे भीख मांगनी पड़े, मुझे भिखमंगा होना पड़े, तो कितना दुख न होगा! इतना दुख इसे नहीं हो रहा है। हां, तुम्हें होगा।
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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