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एस धम्मो सनंतनो
और नाव पर तो तुम मेरी सवार हुए। अब पुराने किनारे से सब मन के नाते टूट जाने दो। अब पुराने किनारे से सब धागे हटा लो। अब कोई रस्सी बंधी न रहे, नहीं तो कई बार ऐसा होता है, नाव में भी सवार हो जाते और कहीं नहीं पहुंचते।
तुमने कहानी सुनी है न!
एक रात कुछ लोगों ने शराब पी ली। पूर्णिमा की चांदनी रात थी। शराब की मस्ती, गीत गाते नदी तट पर पहुंच गए। नाव मछुए बांधकर चले गए थे किनारे से। नाव में चढ़ गए। पतवारें उठा लीं। खूब खेया। नशे में थे। खेते ही रहे। । सुबह जब भोर होने लगी और ठंडी हवाएं आने लगीं; थोड़ा नशा उखड़ा, थोड़ा नशा कम हुआ, तो एक शराबी ने कहा ः कोई भाई जरा किनारे उतरकर देख ले कि हम कितनी दूर निकल आए और किस दिशा में निकल आए! रातभर खेते रहे, न मालूम कहां आ गए हों?
एक उतरा और किनारे पर पेट पकड़कर खूब हंसने लगा। पूछने लगे दूसरे कि बात क्या है! उसने कहा कि बात बड़े मजे की है। हम कहीं गए नहीं। क्योंकि हम नाव को किनारे से छोड़ना तो भूल ही गए। वह तो किनारे जंजीर से बंधी है। पतवार तो हमने बहुत चलायी-सच-मगर हम जहां थे, वहीं हैं!
नाव में बैठकर भी जरूरी नहीं कि यात्रा हो जाए। किनारे से जंजीरें खोलनी पड़ेंगी। और ध्यान रखनाः एकाध जंजीर नहीं है, बहुत जंजीरें किनारों से बंधी हैं। इधर धन की जंजीर है। इधर पद की जंजीर है। इधर मोह की जंजीर है। इधर प्रतिष्ठा की जंजीर है। न मालूम कितनी जंजीरें किनारों से बंधी हैं! उन सबको काटना पड़ेगा। ___ मैं तुम्हारे हाथ में पतवार दे सकता हूं। मैं तुम्हें कह सकता हूं कि ये जंजीरें खोलो। लेकिन यह करना तुम्हें पड़ेगा।
तुम्हारी जंजीरें मैं नहीं खोल सकता। क्योंकि जो जंजीरें दूसरा खोल दे, उससे असली स्वतंत्रता घटित नहीं होती।
मेरे खोलने से क्या होगा! अगर जंजीरों से तुम्हारा मोह है, तो मैं मुंह भी न मोड़ पाऊंगा कि तुम फिर जंजीरें बांध लोगे। अगर जंजीरों से तुम्हारा लगाव है, तो वे फिर बंध जाएंगी।
तुम्ही जागो और जंजीरें खोलो। बुद्ध ने कहा है : बुद्धपुरुष तो केवल इशारा करते हैं; चलना तो तुम्हें ही पड़ता है।
आखिरी प्रश्नः
आप कहते हैं कि सुख की खोज में से ही दुख मिलता है। फिर क्यों सारा अस्तित्व सुख की खोज में व्यस्त मालूम होता है?