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________________ धम्मपद का पुनर्जन्म बतियाओ मत मौसम चुप रहने का ठंडी हवाओं से कह दो रुक जाएं अंधियारी छाहों से कह दो झुक आएं मजबूर समां है चुप-चुप सब सहने का मौसम चुप रहने का बतियाओ मत। दर-दर चहकती खामोशियां रोको तो गुमराह निगाहों को भी कुछ टोको तो अब समय नहीं है लहरों में बहने का मौसम चुप रहने का बतियाओ मत। सपने पंसारी की दुकान बन बैठे याद की मदारिन ने भोलें दिल ऐंठे लाचार जुबां है दर्द न कुछ कहने का मौसम चुप रहने का बतियाओ मत। अब तुम्हारे जीवन में चुप रहने की घड़ी आयी। अब कुछ तुम्हारे जीवन में हुआ, जिसे कहा नहीं जा सकता; कभी नहीं कहा जा सकता। यह शुभ घड़ी है। यह एक नया सूत्रपात है। यह परमात्मा की तुम्हारे जीवन में पहली झलक है, पहली कौंध, पहली बिजली! बतियाओ मत मौसम चुप रहने का अब चुप-चुप इसे साधो। अब चुप-चुप इसे भीतर बांधो। अब चुप-चुप इसमें रमो। 61
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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