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________________ एस धम्मो सनंतनो मानसिक शांति है। इसलिए मानसिक शांति कोई चाह ही नहीं सकता। चाह ही तो अशांति का कारण है। चाहा–कि चूके; और अड़चन बढ़ जाएगी। ऐसे ही अड़चन काफी है। तो ऐसे लोगों को मैं कहता हूं: वैसे ही अशांति काफी है; अब और अशांति क्यों लेनी? इतना ही काफी है। इससे मन नहीं भर रहा है। अब मानसिक शांति की भी चाह है! इस झंझट में न पड़ो। ज्यादा अच्छा यही हो क्यों मन अशांत है, इसको समझो; इसके भीतर प्रवेश करो। और तुम पाओगेः अशांति इसीलिए है कि बहुत सी वासनाएं हैं, और कोई वासना कभी पूरी नहीं होती। नहीं पूरी होती, तो अशांति-अशांति-अशांति। __इस समझ का परिणाम यह होता है कि वासनाएं छूट जाती हैं। और जहां वासना नहीं है, वहां जो है, वही मानसिक शांति है। उस मानसिक शांति में निर्वाण का फूल लगता है। लेकिन तुम्हारे कुछ कोशिश करने से नहीं लगता है। तुम्हारी चेष्टा से नहीं लगता। तुम्हारी चेष्टा से तो वही पैदा होगा, जो तुमसे पैदा हो सकता है। निर्वाण का फूल तो परमात्मा से आता है, वह तो प्रसाद है। वह तो अनंत से आता है। तुम सिर्फ झेलने वाले होते हो। तुम पैदा करने वाले नहीं होते। तुम सिर्फ स्वीकार करने वाले होते हो; अंगीकार करने वाले होते हो। वह तो उतरता है। उसका अवतरण होता है। वह मौजूद ही है। सिर्फ जिस दिन तुम्हारी हृदय की भूमिका तैयार हो जाएगी, अचानक तुम पाओगेः वह फूल उतर आया। तैर गया तुम पर। भर गया तुम्हें। ___ वासना थी, तो खाली-खाली रहे। वासना से खाली हुए, तो परमात्मा से भरे। फिर उसे कुछ भी नाम दो : निर्वाण कहो, मोक्ष कहो, सत्य कहो, सच्चिदानंद कहो। फिर नामों का भेद है। तुमने पूछा है : 'दिल को है तुमसे प्यार क्यों, यह न बता सकूँगा!' बताया भी नहीं जा सकता। इसलिए नहीं कि भाषा में कहना कठिन है, बल्कि इसलिए कि तुम्हें भी पता नहीं है। शिष्यत्व ऐसी अपूर्व घटना है कि शिष्य को भी पता नहीं होता : क्यों घट रही है? कैसे घट गयी? 'दिल को है तुमसे प्यार क्यूं यह न बता सकूँगा तुम को नजर में रख लिया दिल जिगर में रख लिया खुद मैं हुआ शिकार क्यूं यह न बता सकूँगा' ठीक है बात। कोई उपाय बताने का नहीं। कोई कभी नहीं बता पाया। यह बात बताने की है भी नहीं। यह बात तो चुप-चुप भीतर सम्हालने की है। 60
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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