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________________ धम्मपद का पुनर्जन्म आफिस; पत्नी थी। पत्नी बहुत घबड़ा गयी, क्योंकि एक लाख रुपया इकट्ठा! कभी सौ रुपए भी इकट्ठे हाथ नहीं पड़ते थे। तनख्वाह इसके पहले कि मिले, कि उधारी हो जाती थी। एक लाख रुपया! पत्नी ने सोचा कि मुश्किल हो जाएगी। पति सम्हाल न सकेगा इतना सुख। वह घबड़ायी। ईसाई थी। पास ही पादरी रहता था। पादरी के पास गयी कि आप कुछ करो। यह लाख रुपया मिला है। मेरे पति को कुछ हो न जाए। वैसे ही उनका दिल कमजोर है। पादरी ने कहा ः तुम घबड़ाओ मत; मैं आता हूं। पादरी आया। बैठ गया। जब पतिदेव वापस लौटे, तो पादरी ने कहा : सुनो, तुम्हें लाटरी मिली है, दस हजार रुपए मिले हैं। धीरे-धीरे...सोचा कि धीरे-धीरे मात्रा में देना है। लाख कहूं इकट्ठा, दिक्कत होगी। दस हजार...फिर दस हजार...ऐसे धीरे-धीरे कहूंगा। कहाः दस हजार रुपए तुम्हें लाटरी में मिले हैं। __पति ने कहाः सच में! अगर सच में मिले हैं, तो पांच हजार तुम्हें दिए। यह सुनते ही पादरी तो गिरा। उसका हार्टफेल हो गया। उसने यह नहीं सोचा था कि मुझ को भी इसमें मिलने वाले हैं। सुख गहरी उत्तेजना पैदा कर सकता है। सुख भी एक तरह की तकलीफ है, एक तरह का ज्वर है। दुख तो है ही ज्वर; सुख भी ज्वर है। सुख भी थकाता है—यह तुमने देखा! सुख की भी तुम ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर सकते। थकाने लगता है; उबाने लगता है। कितनी देर सुख को बर्दाश्त कर सकते हो? इसीलिए दुख बाहर खड़ा रहता है। वह कहता है, जब तुम सुख से थक जाओ, मैं हाजिर हूं सेवा के लिए। जब तुम दुख से थक जाते हो, तब तुम फिर सुख की खोज करने लगते हो। सुख से थक गए, फिर दुख की खोज करने लगते हो। तुमने देखाः सुख में भी तुम्हारा मन दुख की खोज करने लगता है। दुख के नए जाल बुनने लगता है। आनंद वैसी दशा का नाम है, जहां न तो सुख रहा, न दुख रहा। परम शांति हो गयी, परम विश्राम की घड़ी आ गयी। उस परम विश्राम में कहां समय! तुम पूछे हो : 'बुद्ध के पास पश्चात्ताप के तीव्र क्षणों में स्वर्ण मछली को अपने पूर्व-जन्मों का स्मरण हुआ। क्या बुद्ध के पास प्रसाद के क्षणों में भी पूर्व-जन्मों का स्मरण होता है?' प्रसाद के क्षणों में कौन फिकर करता है पूर्व-जन्मों की! इस जन्म की भी कौन फिकर करता है ! आने वाले जन्मों की भी कौन फिकर करता है! चिंताएं विलुप्त हो जाती हैं। जहां चिंताएं नहीं हैं, वहां कोई अतीत नहीं, कोई भविष्य नहीं है। जहां मन ही नहीं है, वहां कैसा समय? इसलिए नहीं। पश्चात्ताप में, दुख में ही पुराने की याद आती है। तुमने देखा : बूढ़े आदमी लौट-लौटकर पीछे देखते रहते हैं। आगे तो कुछ A /
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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