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________________ एस धम्मो सनंतनो देखने को बचता भी नहीं। मौत खड़ी है। वह मौत की दीवाल! और रोज पास सरके जा रहे हैं। क्यू छोटा होता जा रहा है। आगे जो लोग खड़े थे, वे गुजरने लगे, जाने लगे। मौत उन्हें ले जाने लगी। अब अपना भी नंबर आता होगा। अब ज्यादा देर नहीं है। आगे तो कुछ देखने को है नहीं। आगे देखने में डर लगता है। पीछे देखने लगते हैं। बूढ़ा आदमी सदा अतीत की खोजता है; अतीत की सोचता है। इसलिए बूढ़े आदमी कहते हैं : अरे! वे दिन सुख के, स्वर्ण दिन, सतयुग, रामराज्य! ये सब बूढ़े आदमियों की बातें हैं। उसका सारा स्वर्णयुग पीछे है। वह कहता है, अच्छे दिन गए। अब वे दिन कहां, जब घी इस भाव बिकता था! अब वे दिन कहां? और तुम यह मत सोचना कि इसमें कुछ सचाई है। घी जरूर इसी भाव बिकता था, यह भी सच है। मगर उस वक्त भी जो बूढ़े थे, वे भी पीछे देख रहे थे। वे अपने समय की सोच रहे थे—जब घी इस भाव बिकता था! . तुम ऐसा कोई समय नहीं खोज सकते, जब बूढ़ों ने अपने पीछे का न सोचा हो, और कहा न हो कि पहले दिन अच्छे थे। अब कहां वे बातें रहीं! अब तो सब बिगड़ गया। अब न वे लोग रहे, न वे सुख के दिन रहे। बूढ़ा पीछे-पीछे लौटकर देखता है। बूढ़ा पीछे से बंधा होता है, अतीत से बंधा होता है। पश्चात्ताप में होता है। जो नहीं कर पाया वह और कर लेता! दिन निकल गए स्वर्ण जैसे! दुख पकड़ता है। पीड़ा पकड़ती है। रोता है। छोटे बच्चे भविष्य की सोचते हैं। उनका स्वर्णयुग आगे होता है। और यही बात जातियों के संबंध में सच है, राष्ट्रों के संबंध में सच है। जवान वर्तमान की सोचते हैं; बच्चे भविष्य की; बूढ़े अतीत की। जो समाज बूढ़ा हो जाता है, वह भी अतीत की सोचता है। जैसे यह भारत। यह बूढ़ा समाज है। इस जमीन पर सबसे बूढ़ी जाति है। यह सदा पीछे की सोचती है-वेद, रामराज्य, सतयुग-सदा पीछे की सोचती है। इसको आगे कुछ दिखता नहीं। __ अमेरिका बच्चों जैसा राष्ट्र है; कोई तीन सौ साल की उसकी उम्र है। वह हमेशा भविष्य की सोचता है—आगे। पीछे तो कुछ है भी नहीं सोचने को। बहुत से बहुत जाओ तो वाशिंगटन, लिंकन। और कहां जाओगे? तो पीछे ज्यादा जाने को जगह भी नहीं है। थोड़े बहुत दौड़े-और खतम; इतिहास खतम हो जाता है। ___ भारतीय मन को पीछे जाने की खूब सुविधा है। कितने ही पीछे जाओ, कभी कुछ खतम नहीं होता। और चले जाओ, और चले जाओ, चलते ही चले जाओ। अनंत पड़ा है अतीत। रूस जवान है; वर्तमान की सोचता है। न अतीत की, न भविष्य की। अभी जो है, जो यह क्षण हाथ में है, इसको भोग लो। आगे का क्या पक्का! पीछे तो जो था, गया। जातियां, व्यक्ति, समाज, राष्ट्र-सबकी सोचने की श्रृंखला, तर्क-सरणी एक 68
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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