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________________ धम्मपद का पुनर्जन्म पूरे अर्थ तुम्हारे सामने प्रगट हो जाएंगे, उस दिन सब बुद्धों का सार समझ में आ गया। तब तुम भी कह सकोगेः यही बुद्धों का शासन है। दूसरा प्रश्नः . . आपने कल स्वर्ण मछली की जो कथा कही, वह शास्त्रों में बहुत भिन्न प्रकार की दी हुई है। मैं चश्मदीद गवाह हूं। तुम शास्त्र में बदल लो। मेरी अर्ज है-शास्त्र में सुधार कर - लो। मुझे पता है : शास्त्र में भिन्न रूप से दी गयी है बात। क्योंकि जिन्होंने शास्त्र संगृहीत किए हैं, वे ढाई हजार साल पहले हुए। उस समय जो उन्हें उचित लगा, उन्होंने इकट्ठा किया। ढाई हजार साल में मनुष्य ने बड़ी यात्रा कर ली है। गंगा का बहुत पानी बह गया है। ढाई हजार साल में मनुष्य की भाषा परिष्कृत हुई है। विचार परिष्कृत हुए हैं; चेतना नए-नए ढंगों में विकसित हुई है। आज कथा को वैसे ही कह देना, जैसी ढाई हजार साल पहले कही गयी थी, गलत होगा; बुद्ध के साथ अन्याय होगा। ढाई हजार साल में जैसे आदमी बदला है, ऐसे ही कथा को भी बदलना चाहिए। तो ही आज के आदमी को पकड़ में आएगी। ढाई हजार साल पहले जो कथा लिखी गयी थी, वह तो ऐसा है, जैसे खदान से निकाला गया अनगढ़ हीरा। कोई जौहरी होगा, तो पहचान लेगा। लेकिन साधारण आदमी अनगढ़ हीरे को न पहचान पाएगा। पहले तो उस हीरे को निखारना होगा, साफ करना होगां, तराशना होगा। उस हीरे पर चमक लानी होगी। उस हीरे से धूल, असार झाड़ना होगा, तब साधारण आदमी पहचान पाएगा। ___ सारी कथाएं, शास्त्रों में जो दी गयी हैं, अनगढ़ हीरे हैं। जब मैं उन्हें कहता हूं, तो मैं तराशकर कहता हैं। __ जिस आदमी ने कोहिनूर खोजा था, तब वह अनगढ़ हीरा था। उसे पता भी नहीं था कि यह कोहिनूर है। बहुत दिन तक तो उसके बच्चे उससे खेलते रहे। मिल गया था पड़ा हुआ नदी के किनारे। उसका खेत था नदी के किनारे। नदी उसके खेत से होकर बहती थी। रेत में पड़ा मिल गया था यह। चमकदार पत्थर लगा; सुंदर रंगीन पत्थर लगा; वह उठा लाया था बच्चों के खेलने के लिए। शायद तुमने कहानी न सुनी हो। कहानी बड़ी अदभुत है। कैसे गोलकुंडा खोजा गया? यह पहला हीरा था, जो गोलकंडा में मिला। एक रात एक संन्यासी इस आदमी के घर में मेहमान हुआ, और उस संन्यासी ने कहा कि तू कब तक इस ऊबड़-खाबड़ जमीन में, कम उपजाऊ जमीन में मेहनत 39
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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