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________________ एस धम्मो सनंतनो इसलिए रोशनी को देख सकते हो। और कान ध्वनि से निर्मित है, इसलिए ध्वनि को सुन सकते हो। कान नहीं हैं जिसके पास, जो बहरा है, फिर तुम कितने ही बड़े कलाविद लाओ, बड़े-बड़े संगीतज्ञ लाओ, कुछ भी न होगा । बहरे को कुछ सुनायी न पड़ेगा। और हो सकता है, बहरा मानता हो कि जब मुझे नहीं सुनायी पड़ता, तो ध्वनि हो ही नहीं सकती ! और अंधा मानता हो कि जब मुझे नहीं दिखायी पड़ता, तो रोशनी हो कैसे सकती है ! सूरज नहीं, चांद नहीं, तारे नहीं । तुम जानते हो कि हैं। लेकिन तुम्हारे पास आंख है। तुम्हारे पास भी आंख न होती, तो तुम भी न जानते । ऐसे ही बुद्धत्व को देखने की भी आंख होती है । उसी आंख को तो तीसरा नेत्र कहा है। जब तुम्हारे पास वह तीसरा नेत्र होगा, तब तुम बुद्ध को पहचानोगे । बुद्ध को पहचाना, तो समस्त बुद्धों को पहचाना। एक सदगुरु को जान लिया, एक सदगुरु का स्वाद ले लिया तो समस्त गुरुओं का स्वाद आ गया। बुद्ध ने कहा है : सागर को कहीं से भी चखो-खारा; ऐसे ही बुद्धपुरुष हैं; कहीं से भी चखो, एक ही स्वाद है उनका । इस घाट, उस घाट; इस- किनारे, उस किनारे, कहां से तुम सागर को चखते हो; कुछ भेद नहीं पड़ता । लेकिन आंख वालों के पीछे अंधों की जमातें हैं। आंख वाले कुछ कहते हैं, अंधे कुछ समझते हैं। आंख वाले कुछ कहते हैं, अंधे कुछ पकड़ते हैं! सुंदर परमात्मा के गीत गाने वालों के पीछे बहरों की जमातें हैं। हिंदू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं, जैन हैं, बौद्ध हैं—ये अंधे और बहरों की जमातें हैं । ये कुछ का कुछ पकड़ते हैं। ये कुछ का कुछ समझते हैं । और इनकी भीड़ है। यही प्रतिपादक हैं । यही हकदार हो जाते हैं। इनकी ही व्याख्या स्वीकृत होने लगती है ! बुद्ध तो बुद्धओं के हाथ में पड़ जाते हैं। फिर जो अर्थ होता है, वह अनर्थ है— अर्थ नहीं है। फिर भेद हो जाते हैं। फिर बड़े भेद मालूम पड़ते हैं। जहां जरा भी भेद नहीं, वहां इतनी दीवालें खड़ी हो जाती हैं ! ये भेद सांप्रदायिक हैं। धर्म में कोई भेद नहीं है । धर्म एक है, संप्रदाय अनेक हैं। और जिसको धर्म दिख जाएगा, वह संप्रदाय से मुक्त हो जाता है। लेकिन कैसे तुम्हें दिखे ? मैं तुमसे सोच-विचार को नहीं कह रहा हूं कि तुम खूब सोचो- विचारो, सिर पटको । इससे कुछ भी न होगा। तुम सिर से मुक्त होओ। ध्यान में उतरो । बुद्ध कैसे बुद्ध बने ? ध्यान से बुद्ध बने । महावीर कैसे जिन बने ? ध्यान से जिन बने। तुम भी ध्यान में उतरो । जिन सीढ़ियों से उतरकर बुद्धपुरुष जागे हैं, उन्हीं सीढ़ियों से तुम भी उतरो । जैसे-जैसे अपने भीतर गहराई बढ़ेगी, शांति बढ़ेगी, शून्य बढ़ेगा, वैसे-वैसे तुम पाओगे : बुद्ध के वचनों के नए अर्थ प्रगट होने लगे। जिस दिन बुद्ध के वचनों के 38
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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