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________________ धम्मपद का पुनर्जन्म कहता। अगर तुमने अभेद देखने की चेष्टा शुरू कर दी, तो भी गलती हो जाएगी। तुम तो जो करोगे, गलत होगा। तुम मिटो, तब जो होता है, वही सही है। तुम जाओ, विदा हो जाओ। तुम बीच में न आओ, तब जो होता है, वही सही है। तो तुमसे मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सैद्धांतिक रूप से तुम मान लो कि कोई भेद नहीं है। तो कुरान में भी वही लिखा है, जो वेद में है। और धम्मपद में भी वही लिखा है, जो बाइबिल में है। ऐसा नहीं कह रहा हूं तुमसे। मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि तुम्हारा मन जब तक है, तब तक तुम भेद देखो तो गलती है, अभेद देखो तो गलती है। मन से सत्य को जानने का कोई द्वार ही नहीं है। मन के पार उठो। सोचने के पार चलो। विचार से मुक्त हो जाओ। निर्विचार में तुम्हें दिखायी पड़ेगा अभेद। लेकिन खयाल रखनाः अभेद का मतलब यह नहीं है कि एक-एक शब्द बुद्ध ने वही कहा है, जो महावीर ने कहा है। सार तत्व एक है। बुद्ध के उदाहरण अलग। होंगे ही। जीसस के उदाहरण अलग। होंगे ही। जीसस एक अलग परंपरा से आए हैं। अलग कहानियां सुनी हैं बचपन में उन्होंने। अलग भाषा सीखी है। अलग भाषा का ढंग सीखा है। जब वे बोलेंगे, तो उसमें पुरानी बाइबिल का प्रभाव होगा। बुद्ध में वह प्रभाव कहीं भी न मिलेगा। बुद्ध ने कुछ और सीखा है। किसी और परंपरा में जन्मे हैं। किसी और भाषा-स्रोत से आए हैं। उनके वचनों में उपनिषद की भनक होगी। उनके वचनों में उपनिषद की भाषा होगी। तो ये भेद होंगे, लेकिन ये भेद ऊपरी हैं। जैसे-जैसे तुम पर्ते उघाड़ोगे और भीतर जाओगे, वैसे-वैसे अभेद होने लगेगा। जिस क्षण तुम बुद्ध के हृदय को समझ लोगे, उस दिन तुमने महावीर को समझा, कृष्ण को समझा, मोहम्मद को, जरथुस्त्र को, सब को समझा। जिन्होंने जाना है, उन सब को समझा। __ लेकिन बुद्ध के हृदय में उतरने के लिए, पहले तुम्हें अपने हृदय में उतरना होगा। जितने गहरे तुम अपने भीतर जाओगे, उतने ही बुद्ध के भीतर जा सकते हो। उससे ज्यादा नहीं। . खयाल रखना ः तुम अपने से ज्यादा कुछ भी नहीं जान सकते हो। तुम अपने से ऊपर नहीं देख सकते हो। इसलिए अगर अपने से ऊपर देखना हो, तो अपने से ऊपर उठना पड़े। और अपने से ज्यादा जानना हो, तो अपने से ज्यादा होना पड़े। क्योंकि तुम्हारा होना ही तो तुम्हारा जानना बनता है। ऐसा समझो कि एक अंधा आदमी रोशनी को जानना चाहता है, पर आंख उसके पास नहीं है। कैसे जाने? अंधा रोशनी नहीं जान सकता। पहले आंख चाहिए। - पश्चिम के एक बुद्धपुरुष प्लोटिनस ने कहा है : तुम वही देख सकते हो, जो तुम्हारे भीतर मौजूद हो, उससे अन्यथा नहीं। सूरज मौजूद है आंख में तुम्हारी, इसलिए तुम सूरज को देख सकते हो। आंख सूरज का हिस्सा है, रोशनी से बनी है, 37
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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