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एस धम्मो सनंतनो
ठीक बताने के पहले गलत पकड़ा दिया जाता है। ठीक को समझाने के लिए गलत का उपयोग किया जाता है। और एक को जब तुमने जोर से पकड़ लिया, और सबके विपरीत है, ऐसी धारणा बना ली, तो फिर यह धारणा तुम्हारे जीवनभर तुम्हारी आंखों को धोखा देती रहेगी।
इन धारणाओं के कारण भेद दिखायी पड़ता है, अन्यथा जरा भी भेद नहीं है। भेद हो ही नहीं सकता। भेद का उपाय नहीं है। जहां सारे अंतर के कलुष गिर गए, जहां सारे विचार शांत हो गए, जहां व्यक्ति मन से मुक्त हो गया-वहां कैसा भेद! ___ यह हो सकता है कि महावीर ने किसी एक बात पर जोर दिया; बुद्ध ने किसी दूसरी बात पर जोर दिया। यह भी इसलिए हुआ कि जो सुनने वाले थे, उनकी क्षमता, उनकी पात्रता, उनकी संभावना, इस सब को देखकर बात कही गयी है। लेकिन सत्य के संबंध में रत्तीभर भी भेद नहीं हो सकता।
फिर सत्य के संबंध में सारे बुद्ध मौन हैं; भेद होगा भी कैसे? प्रक्रियाओं में भेद हो सकता है। कोई कहता है : बैलगाड़ी से जाओ। कोई कहता है: रेलगाड़ी से जाओ। कोई कहता है : हवाई जहाज से चले जाओ। यह प्रक्रियाओं में भेद हो सकता है। लेकिन जहां पहुंचना है, जो मंजिल है, वहां तो बैलगाड़ी भी छूट जाएगी; हवाई जहाज भी छूट जाएगा; रेलगाड़ी भी छूट जाएगी। ___मंजिल पर पहुंचकर तो वाहन छूट जाएंगे। मन ही छूट जाएगा। सब दर्शन छूट जाएंगे। सब दृष्टियां छूट जाएंगी। वहां तो तुम भी न बचोगे। भेद करने वाला भी न बचेगा। वहां अभेद होगा। वहां समरसता होगी। ___ मैं तुमसे कहना चाहता हूं : बुद्धों में कभी कोई मतभेद नहीं है। लेकिन तुम्हें मतभेद दिखता है, यह सच है। जो तुम्हें दिखता है, वह होना ही चाहिए, इस प्रांति में मत पड़ना। तुम्हें तो कभी-कभी तुमने ही सुबह जो लंगोट टांग दिया था रस्सी पर सूखने को, वही रात भूत दिखायी पड़ने लगता है! तुम्हें तो कभी-कभी रास्ते में पड़ी रस्सी सांप दिखायी पड़ने लगती है!
तुम्हारे देखने की क्षमता शुद्ध नहीं है। तुम्हें तो कुछ का कुछ दिखायी पड़ता है। तुम्हें तो वही दिखायी पड़ता है, जो तुम मान लेते हो। तुम्हारी धारणा तुम्हारी दृष्टि पर पर्दा डाल देती है। तुम्हें तो क्षुद्र बातों में भूल हो जाती है, तो इन विराट, इन असीम सत्यों के संबंध में अगर तुमसे भूल हो जाए तो कुछ आश्चर्यजनक नहीं है।
में यह भी नहीं कह रहा कि तुम मान लो कि भेद नहीं है। तुमने यह मान लिया, तो फिर तुमसे दूसरी भूलें होनी शुरू हो जाएंगी। तब तुम अभेद को देखने की कोशिश करने लगोगे। और कहीं भेद भी होगा-प्रक्रियाओं में भेद होगा, विधियों में भेद होगा तो तुम वहां भी अभेद देखने की कोशिश करने लगोगे। वचनों में भेद होगा; शब्दों में भेद होगा; कहने की अभिव्यक्तियां भिन्न होंगी। कोई बुद्ध गाकर कहता, कोई बुद्ध बिना गाए कहता; कोई बुद्ध चुप रहकर कहता, कोई बोलकर
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