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________________ एस धम्मो सनंतनो का कारण पूछा। शास्ता ने कहाः आनंद! यह सुअरी ककुसंध बुद्ध के शासन में एक मुर्गी थी । और प्राचीन बुद्ध ककुसंध, उनके शासन में एक मुर्गी थी। भगवान ककुसंध के वचनों को सुनकर और भगवान के विहार-स्थल के पास ही रहने के कारण उनके प्रति प्रीति को उत्पन्न हो गयी थी। जब वे बोलते, तो यह सदा पास आ जाती। समझ न भी सकती, तो भी सुनती। समझ कौन सकता है ? तो भी सुनती। भावविभोर हो जाती, तन्मय हो जाती । मुर्गी ही थी। कुछ ज्यादा सोच-विचार की संभावना भी न थी । आदमियों तक की नहीं है! लेकिन सरल थी, निर्दोष थी। उनकी सुवास इस अज्ञानी मुर्गी को भी छू गयी थी । भगवान जब श्री बोलते, यह आसपास ही बनी रहती। इसे सत्संग का चाव लग गया था। ऐसा हो जाता है। महर्षि रमण के पास एक गाय बनी रहती थी। यह तो अभी की बात है। वे जब बोलते, तो गाय निश्चित आ जाती। खिड़की में से सिर अंदर कर लेती। सुनती रहती! जब तक वे बोलते, बराबर सुनती रहती। जैसे ही बोलना बंद करते — जाती । रोज आती। इतना नियमित भक्त कोई भी नहीं था, जितनी गाय थी ! जब गाय मरी, तो रमण महर्षि ने उसे वैसे ही सम्मान से विदा दी, जैसे कोई मनुष्य को देता है । उसकी समाधि बनवायी। ऐसी ही यह मुर्गी रही होगी। जब भगवान ध्यान करते, तो यह अत्यंत निकेट आकर खड़ी रहती थी। कभी-कभी आंखें बंद कर लेती थी। ज्यादा तो नहीं समझ सकती थी, लेकिन जैसा भगवान शांत बैठे, ऐसे ही यह भी शांति खड़ी हो जाती । देखती ः भगवान हिलते-डुलते नहीं; यह भी अडोल हो जाती। देखती : उन्होंने आंखें बंद कीं, तो यह भी आंखें बंद कर लेती। ऐसे धीरे-धीरे इसको रस लगा; रस पगी। धीरे-धीरे सुवास पकड़ी। सत्संग जमा । ऐसे उसने बहुत पुण्य अर्जन किया था। और उस पुण्य के कारण दूसरे जन्म में उवरी नाम की राजकन्या होकर उत्पन्न हुई थी। उस दूसरे जन्म में एक पाखानाघर में कीड़ों को देखकर पुलवक संज्ञा की भावना कर प्रथम ध्यान को प्राप्त हुई। मुर्गी थी। संध के सान्निध्य का परिणाम : राजकुमारी होकर पैदा हुई। जब राजकुमारी होकर पैदा हुई, तो एक दिन पाखाने में कीड़े दिखायी पड़े, उन कीड़ों को देखकर उसे अपूर्व बोध हुआ— कि ऐसी ही तो हमारी दशा है। जैसे कीड़े बिलबिला रहे हैं, ऐसे ही आदमी बिलबिला रहा है ! और कीड़े भी सोचते पाखाने के कि बड़े मस्ती में हैं। संसार बसा रहे हैं। वे भी प्रेम में पड़ते। विवाह इत्यादि करते। बच्चे पैदा करते। सारा संसार जमाते । ऐसे ही तो हम भी हैं। हम में और इनमें भेद क्या है ? ऐसा उसे बोध हुआ। तो पहले ध्यान का फूल उसके जीवन में खिला था। उस 28
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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