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________________ तृष्णा की जड़ सोका तम्हा पपतन्ति उदविन्दू'व पोक्खरा।। तं वो वदामि भदं वो यावन्तेत्थ समागता। तण्हाय मूलं खणथ उसीरत्थो व वीरणं। मा वो नलं व सोतो व मारो भजि पुनप्पुनं ।। 'इसलिए मैं तुम्हें जितने तुम यहां आए हो, तुम्हारे कल्याण के लिए कहता हूं, जैसे खस के लिए लोग उषीर को खोदते हैं, वैसे ही तुम तृष्णा की जड़ खोदो।' तृष्णा की जड़ है मूर्छा। तृष्णा की जड़ है बेहोशी, आंख बंद किए जीए जाना। तृष्णा की जड़ है, अचेतना। तुम इस जड़ को खोदो। अचेतना को मिटा दो। ध्यान में जगो। होश से उठो, होश से बैठो। होश से करो, जो भी करना है। ___ क्रोध आए, तो बुद्ध यह नहीं कहते कि क्रोध को दबाओ। बुद्ध कहते हैं : होश से क्रोध को करो। और तुम चकित हो जाओगे। होश से कभी कोई क्रोध कर पाया? ___ तुम जागकर क्रोध को करो। जब क्रोध पकड़े, तब झकझोरकर अपने को जगा लो। होशपूर्वक क्रोध को करो और तुम पाओगेः इधर होश उठा, उधर क्रोध गिरा। दोनों साथ नहीं होते। दोनों का कोई संग-साथ संभव नहीं है। . वासना उठे, कामवासना उठे, तो बुद्ध नहीं कहते कि दबाओ। कोई ज्ञानी नहीं कहता कि दबाओ। जो कहता है दबाओ, उसे कुछ भी पता नहीं है। वह महाअज्ञानी है। वह अंधा है और दूसरों को अंधा बनाएगा। बुद्ध कहते हैं : जब कामवासना उठे, तब ध्यान करो। तब देखोः क्या उठ रहा है? क्यों उठ रहा है? पहले इससे क्या मिला? बहुत बार इसमें गिरे थे, क्या पाया? विश्लेषण करो। समझो। सिर्फ समझो। और जैसे-जैसे तुम्हारी समझ गहन होगी, वैसे-वैसे तुम पाओगे: वासना का धुआं गया। ___'तृष्णा की जड़ खोदो। तुम्हें जल-प्रवाह में उत्पन्न सरकंडे की भांति बार-बार मार न तोड़े।' .. बुद्ध कहते हैं : यह तृष्णा का शैतान नहीं तो तुम्हें बार-बार तोड़ेगा। बार-बार गिराएगा। बार-बार सताएगा। दूसरा दृश्यः भगवान वेणुवन में विहार करते थे। एक दिन भिक्षाटन को जाते हुए राह में एक सुअरी को देखकर ठिठक गए और फिर कुछ सोचकर मुस्कुराए और आगे बढ़े। एक सुअरी को देखकर...। आनंद स्थविर ने-जो उनके साथ सदा छाया की तरह लगा रहता था, उनका सेवक था—यह देखा कि बुद्ध ठिठके एक सुअरी को देखकर! कुछ सोचा। फिर मुस्कुराए और आगे बढ़े। आनंद अपनी जिज्ञासा को न रोक सका। और उसने भगवान से ठिठकने, फिर कुछ सोचने और फिर मुस्कुराने >
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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