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तृष्णा की जड़
पुण्य के कारण, उस ध्यान के कारण, उस ध्यान-धन के कारण, फिर ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुई। एक देवी की तरह उत्पन्न हुई। देवतालोक में उत्पन्न हुई। लेकिन देवलोक के सुख में मूर्छित हो गयी।
अक्सर ऐसा होता है : दुख जगा देता है, सुख सुला देता है। इसलिए सुख से सावधान रहना। दुख इतना बड़ा अभिशाप नहीं जितना सुख है। क्योंकि दुख में तो कोई सो नहीं सकता। दुख की पीड़ा जगाए रखती है। सुख में आदमी सो जाता है।
मुर्गी थी, तब ककुसंध बुद्ध का सत्संग करने का रस लिया। उसके परिणाम में राजकुमारी हुई। राजकुमारी थी, तो पाखाने में कीड़ों को देखकर इस बोध को उत्पन्न हो गयी कि सब असार है। और योनियों में भटकना बहुत हो चुका। कंप गयी होगी–कि कभी शायद मैं भी पाखाने का कीड़ा रही होऊं। या कभी हो जाऊं। उस अवस्था में मोह-तृष्णा क्षीण हो गयी, भवतृष्णा क्षीण हो गयी। जीवन को पकड़ने का जो भाव था, वह एकदम शिथिल हो गया। उस ध्यान के कारण देवलोक में उत्पन्न हुई। , लेकिन बुद्ध ने कहा, आनंद, समझना। देवलोक के सुख में मूर्छित हो गयी। और अब ध्यान-धन के चुक जाने के कारण इस पृथ्वी पर पुनः सुअर की बेटी होकर पैदा हुई है। आवागमन के इस चक्कर को देखकर मैं ठिठका, बुद्ध ने कहा। सोच में पड़ा। और फिर इसलिए मुस्कुराया कि कैसी मढ़ता है। जागते-जागते फिर सो गए! उठते-उठते फिर गिर गए!
देवलोक से भी आदमी गिर जाता है, क्योंकि पुण्य एक दिन चुक जाते हैं। समाधि से नहीं कोई गिरता है; ध्यान से गिर जाता है। ध्यान और समाधि में यही फर्क है। ध्यान यात्रा है; तुम चाहो तो बीच से लौट सकते हो। समाधि मंजिल है; एक बार पहुंच गएं, फिर लौटना नहीं है। क्योंकि समाधि में तुम खो जाओगे। बचता ही नहीं कोई लौटने वाला। जब तक निर्वाण न घट जाए, तब तक गिरने का डर है, संभावना है।
. तो बुद्ध कहते हैं : मैं ठिठका। यह कैसा हुआ! मुर्गी थी, तब इतना पुण्य अर्जन किया और देवी होकर गिरी और सुअर की बेटी होकर पैदा हुई! तो चौंका; सोच-विचार में पड़ा। फिर हंसी भी आयी कि कैसा आदमी है! कैसी मूढ़ता है!
यह कथा सुनकर आनंद तथा अन्य भिक्षु जो बुद्ध के साथ भिक्षाटन को गए थे, महान संवेग को प्राप्त हुए। शास्ता ने उनमें पैदा हुए संवेग को देखकर नगर की वीथी में खड़े हुए ही इन गाथाओं को कहा।
बोलने के क्षण होते हैं, तभी कुछ बातें कही जाती हैं। जैसे लोहा गरम हो, तभी पीटा जाता है; तभी कुछ बन सकता है। तो सड़क पर खड़े हुए बुद्ध ने ये वचन कहे। क्योंकि लौटते-लौटते विहार तक संवेग खो जाए। आदमी का भरोसा क्या!
ये जो भिक्षु साथ गए थे, इस घटना के आघात में एकदम चौकन्ने हो गए थे;