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________________ मंजिल है स्वयं में हर्जा नहीं है; बिलकुल ठीक है! हिंसा ठीक है। और अगर कोई प्रेम-पाश में बंध जाए, तो गलत है; तो फिल्म पर रोक लगनी चाहिए। छाती में छुरा भोंकना ठीक है, लेकिन किसी का चुंबन लेना ठीक नहीं है। ____ यह जरा सोचने जैसी बात है कि यह कैसी बेहूदी दुनिया है। छुरा भोंकना ठीक है; कोई ऐतराज नहीं है। लेकिन कोई किसी का चुंबन लेता हो, तो ऐतराज है। फिर स्वभावतः, ऐसी मूढ़ दुनिया में अगर छुरेबाजी चलती रहे और चुंबन खो जाए, तो आश्चर्य क्या। प्रेम इस जगत में परमात्मा की पहली किरण है। सब रूपों में मुझे अंगीकार है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि लोग बस, प्रेम-पाश में ही पड़े रहें। लेकिन प्रेम-पाश में जो पड़ेगा, वही उसके बाहर निकल सकेगा। जो प्रेम का अनुभव करेगा, वही एक दिन पाएगा कि इससे तृप्ति नहीं होती; इससे ऊपर जाना है। ठीक है; इससे गुजरना जरूरी था। बिना गुजरे अनुभव भी नहीं होता। .. जो लोग दमन करके बैठे हैं, वे परमात्मा तक कभी नहीं पहुंच पाते। उनका प्रेम कभी प्रार्थना नहीं बनता। क्योंकि प्रेम का अनुभव ही नहीं हुआ जीवन में, ऊपर कैसे उठोगे? ऊपर तो उससे उठ सकते हो, जिसको जाना; जाना और खोटा पाया; जाना और साथ में अनुभव किया कि थोड़े दूर तक जाता है; बहुत दूर तक नहीं जाता। तो तुम्हें पार जाने की संभावना खुलती है। ___ यह कोई मुर्दा आश्रम नहीं है। भगवानदास आर्य ने और आश्रम देखे होंगे निश्चित। मुर्दा आश्रम देखे होंगे, मरे-मराए आश्रम देखे होंगे, जहां अक्सर बूढ़े और बुढ़ियां ही जाते हैं। वहां जवान जाना भी नहीं चाहता। जीवन-विरोधी आश्रम देखे होंगे; जहां जीवन के हर कृत्य की निंदा है; जहां जीवन की निंदा है। ___ यह तो...जीवन का स्वागत है यहां; जीवन का सत्कार है; क्योंकि जीवन ही प्रभु है। और जहां जीवन का स्वीकार है, वहां युवा आएंगे। वहीं आ सकते हैं। यह मंदिर युवकों का है। और स्वभावतः जहां युवा आएंगे, वहां युवा-जीवन की सारी भाव-भंगिमाएं आएंगी। स्त्री-पुरुष होंगे, तो प्रेम में गिरेंगे। एक-दूसरे का हाथ पकड़ेंगे; एक-दूसरे का आलिंगन करेंगे। यह सब ठीक है। इसमें कुछ अड़चन नहीं है। छुरा नहीं भोंक रहे। किसी को मार नहीं रहे। किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे। किसी की चोरी नहीं कर रहे। दो व्यक्तियों ने यह तय किया है कि उन्हें अच्छा लगता है एक-दूसरे के पास खड़े होना; तुम्हारा क्या बिगड़ रहा है? तुम इतना भी बर्दाश्त नहीं कर सकते? तो जरूर तुम रुग्ण हो। तुम्हारा चित्त विकृत है। तुम्हें मनोचिकित्सा की जरूरत है। क्षुद्र धारणाओं को लेकर यहां आओगे, तो खाली हाथ चले जाओगे। और यहां अमृत बह रहा है। तुम अपनी धारणाओं से भरे रहे, तो तुम जानो। 337
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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