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________________ एस धम्मो सनंतनो चाहते हो और बंध नहीं पा रहे हो। तुम्हारे भीतर कुछ कुंठा है। इसीलिए तो तुम कहते हो ः 'मनोहारी प्रेम-पाश में...।' तुम्हारे मन को लुभा गया प्रेम-पाश! मनोहारी कह रहे हो। तुम्हारा मन डांवाडोल हुआ होगा। तुम थोड़ी देर यहां-वहां खड़े-खड़े देखते रहे होओगे। तुमने रस लिया होगा। रात सपने में देखा होगा। बार-बार सोचा होगा, कि यह बात क्या है! लेकिन तुममें यह करने की हिम्मत भी नहीं है। तो फिर निंदा तो कर ही सकता है आदमी! तो यह धर्म नहीं है, यह अधर्म है। तो फिर कृष्ण के पास जो गोपियां नाच रही थीं, वह क्या था? भगवानदास आर्य! उस पर विचार करना। वह अधर्म था? फिर जहां प्रेम है, वहीं अधर्म है! मेरे देखे, जहां प्रेम है, वहीं धर्म है। और तुम अगर मुझसे पूछते हो तो मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि जब भी कोई युवती गहन प्रेम में होती है; तो राधा हो जाती है। और जब भी कोई युवक गहन प्रेम में होता है, तो कृष्ण हो जाता है। गहन प्रेम राधा और कृष्ण को पैदा करता है। इस पृथ्वी पर प्रेम से ज्यादा धार्मिक और कुछ भी नहीं है। इस पृथ्वी पर प्रेम किरण है परमात्मा की। __ लेकिन तुम्हारा होगा दमित मन, कुंठित मन, जैसा कि आमतौर से इस देश के लोगों का है। और फिर तुम्हारा आर्य शब्द जाहिर कर रहा है कि तुम हजार तरह के रोगों से भरे होओगे। हजार तरह की बीमारियां तुम्हारे मन में होंगी। कामवासना को दबाया होगा, समझा नहीं होगा। जीए नहीं होओगे। वहीं से ये विचार उठ रहे हैं। ___ तुम्हें क्या प्रयोजन है ! उस युवा जोड़े ने तुमसे कुछ नहीं पूछा। न उस युवा जोड़े ने प्रश्न पूछा कि हम दोनों प्रेम-पाश में खड़े थे और एक सज्जन खड़े होकर बड़ी मनोहारी आंखों से, और देख रहे थे। क्या यह धर्म है कि दो आदमी जब प्रेम कर रहे हों, तो तुम वहां बीच में जाकर खड़े होकर देखने लगो? लेकिन तुम्हारी आदत पुरानी रही होगी। तुम लोगों के स्नानगृह में चाबी के छेद में से देखने के आदी रहे होओगे। कुछ लोग यही काम करते हैं। वे नालियों में कीड़े खोजते फिरते हैं! क्या प्रयोजन तुम्हें ? तुम यहां आए किसलिए? और दूसरे व्यक्ति में इतना ज्यादा हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति हिंसात्मक है। इसलिए यहां कोई हस्तक्षेप नहीं है। अब यह बड़े आश्चर्य की बात है। अगर रास्ते पर कोई आदमी किसी को मार रहा हो, तो लोग नहीं पूछते कुछ। कोई किसी की हत्या कर दे, तो नहीं पूछते। लेकिन अगर दो व्यक्ति प्रेम-पाश में बंधे हों, तो अड़चन हो जाती है। - तुम देखते हो! हत्यारों को तो महावीर-चक्र प्रदान किए जाते हैं। प्रेमियों को कोई चक्र इत्यादि प्रदान नहीं करता। हत्यारों की तो प्रशंसा होती है, सेनापति! और योद्धा! प्रेमियों की कोई प्रशंसा नहीं होती है। अगर फिल्म में हत्या के दृश्य हों, तो सरकार कोई रोक नहीं लगाती। कोई किसी को मारे, काटे, गोलियां चलाए-कोई 336
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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