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समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान
आंखें तो आंसुओं से नहीं भरीं, लेकिन हृदय उनका भी डांवाडोल हो गया।
उस समय धम्माराम नाम के एक स्थविर ने, यह सोचकर कि मैं अभी रागरहित नहीं हुआ और शास्ता का परिनिर्वाण होने जा रहा है, इसलिए शास्ता के रहते ही मुझे अर्हत्व प्राप्त कर लेना चाहिए-ऐसा सोच, एकांत में जाकर समग्र संकल्प से साधना में लग गया। ___धम्माराम उस दिन से एकांत में रहते, मौन रखते, ध्यान करते। भिक्षुओं के कुछ पूछने पर भी उत्तर नहीं देते थे। स्वभावतः, भिक्षुओं को इससे चोट लगी। धम्माराम अपने को समझता क्या है? पूछने पर उत्तर नहीं देता! उपेक्षा करता है। इस तरह चलता है, जैसे अकेला है, कोई यहां है ही नहीं। __ वहां दस हजार भिक्षु थे बुद्ध के पास। यह धम्माराम भूल ही गया उन दस हजार भिक्षुओं को। स्वभावतः अनेक को चोटें लगीं। अनेक को बात जंची नहीं। लोग जयरामजी करते, उसका भी उत्तर नहीं देता था! बात ही छोड़ दी थी यह। जैसे संसार मिट गया।
भिक्षुओं ने यह शिकायत भगवान से की। भगवान ने उन्हें कहाः धम्माराम को बुला लाओ।
धम्माराम के आने पर पूछा : भिक्षु! तुझे क्या हुआ है? क्या यह सत्य है कि तू अन्य भिक्षुओं से बातें नहीं करता है?
भंते! सत्य है। धम्माराम ने कहा। भिक्षु! तू ऐसा क्यों कर रहा है?
तब धम्माराम ने अपने सारे विचारों को कह सुनाया। उसने कहा आप जाते हैं। चार महीने का समय बचा। आपके रहते अगर मैं मुक्त नहीं हो जाता हूं, तो फिर मेरे लिए कोई आशा नहीं है। आपकी मौजूदगी में अगर मेरा दीया नहीं जल सका, तो मैं नहीं सोचता हूं कि फिर कभी जल सकेगा। फिर कहां खोजूंगा ऐसे बुद्धपुरुष को? फिर जन्मों-जन्मों भटकना पड़ेगा। इसलिए अब एक रत्तीभर भी शक्ति किसी और बात में नहीं गंवाना चाहता हूं। एक आंसू भी नहीं गिराना चाहता हूं। एक शब्द भी नहीं बोलना चाहता हूं। ये चार महीने, जो भी मेरे पास है, सब दांव पर लगा देना है। अगर इस बार हो जाए, तो हो जाए। इतने करीब आकर चूक जाऊं, भगवान! तो फिर कितना समय लगेगा! फिर कहां खोज पाऊंगा? फिर कब कोई किसी बुद्ध से मिलना होगा? ___अबुद्धों की तो भीड़ है। एक खोजो, हजार मिलते हैं। लेकिन बुद्धों को कहां खोजूंगा? हजारों जन्म बीत जाएंगे। और शायद है-भटक जाऊं। आपके रहते न पहुंच पाया, तो अकेले तो बिलकुल भटक जाऊंगा। यह सोचकर मैंने सारी ऊर्जा को अपने भीतर समाहित कर लिया है।
अब मेरे पास तीन ही काम हैं : एकांत—एकांत यानी दूसरों को भूल जाना;
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