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________________ एस धम्मो सनंतनो लिया, जो अस्तित्व की धारा में बहने लगा, वह संतुष्ट है, समाहित है, अकेला है। बुद्ध कहते हैं : उसे ही भिक्षु कहते हैं। यो मुखसञतो भिक्खु मंतभाणी अनुद्धतो। अत्थं धम्मञ्च दीपेति मधुरं तस्स भासितं ।। 'जो मनुष्य मुख में संयम रखता; मनन करके बोलता; उद्धत नहीं होता; अर्थ और धर्म को प्रगट करता—उसका भाषण मधुर होता है।' यो मुखसञतो भिक्खु मंतभाणी अनुद्धतो। जो उतना ही बोलता है, जितना जानता है; जो उतना ही बोलता है, जितना जीया है। जो उतना ही बोलता है, जिसका स्वयं गवाह है-उसकी वाणी स्वभावतः मधुर हो जाती है। सत्य जहां है, वहां माधुर्य है। अत्थं धम्मञ्च दीपेति...। उसके वचनों से धर्म के दीए जलने लगते हैं। मधुरं तस्स भासितं। और उसके व्यक्तित्व से माधुर्य बरसने लगता है। उसके पास भी जो आएगा, वह मस्त हो जाएगा। उसके पास जो आएगा, वह ज्योतिर्मय होने लगेगा। जितने पास आएगा, उतना ज्योतिर्मय होने लगेगा। बुझा दीया जैसे जले दीए के पास आकर जल जाता है, ऐसे ही ऐसे समाहित व्यक्ति के पास, संतुष्ट व्यक्ति के पास, समाधिस्थ व्यक्ति के पास, संबुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति के पास बुझे से बुझा आदमी आकर भी धर्म के दीए से ज्योतिर्मय हो जाता है। जल उठती उसके भीतर सोयी हुई चेतना। अंधेरा मिट जाता है। और परम माधुर्य की वर्षा होती है। दूसरा दृश्यः भगवान के यह कहने पर कि चार माह के पश्चात मेरा परिनिर्वाण होगा, भिक्षु अपने को रोक नहीं सके-जार-जार रोने लगे। भिक्षुओं के आंसू बहने लगे। भिक्षुओं की तो क्या कही जाए बात, अहँतों के भी धर्मसंवेग का उदय हुआ। उनकी 306
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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