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________________ उठाया। मूर्च्छा में मत उठाना। समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान 'जिसके हाथ, पैर और वचन में संयम है...।' जो बोलता है, तो जानता है तो ही बोलता है। 1 तुम कितनी बातें बोलते हो, जो तुम जानते भी नहीं ! कोई तुमसे पूछता है : ईश्वर है ? तुम कहते हो : हां, है । छाती ठोंककर कहते हो : है । तुम्हें ईश्वर का कोई पता नहीं है। संसार में झूठ बोलो, चलेगा। कम से कम परमात्मा को तो छोड़ो ! उस संबंध तो झूठ मत बोलो! तुमसे कोई पूछता है : आत्मा है ? तुम कहते हो : है । और न तुम कभी भीतर गए, और न कभी इस आत्मा का दर्शन किया ! कोई पूछता है : लोग मरने के बाद बचेंगे? तुम कहते हो : हां । पुनर्जन्म है। आत्मा अमर है। तुमने जीवन तक देखा नहीं; मृत्यु की तो बात ही छोड़ो। रात नींद में सो जाते हो, तब तुम्हें पता नहीं रहता कि तुम कौन हो ! तो मृत्यु की गहरी निद्रा में उतरोगे, तो तुम्हें कहां पता रहेगा ? रात की नींद तक में रोज-रोज तुम टूट जाते हो अपने तादात्म्य से; भूल जाते हो, मैं कौन हूं; तो महामृत्यु जब घटेगी, सब तरह से जब तुम मरोगे, क्या तुम्हें याद रहेगा ? न तुम्हें पुनर्जन्मों की कुछ याद है; न तुम्हें आत्मा की शाश्वतता का कुछ पता है । लेकिन कहे जा रहे हो! कुछ भी कहे जा रहे हो! इन झूठों से बचो। इन झूठों से जो बच जाए, वही सत्य को उपलब्ध हो सकता है। जिसके हाथ, पैर और वचन में संयम है; जो उत्तम संयमी है; जो अध्यात्मरत — जो अपने में लीन रहता - समाहित... । फिर एक शब्द आया जो सम से बना है - समाहित | सब तरह से अपने में ठहरा हुआ; सब तरह से अपने में थिर; सब तरह से अपने में प्रतिष्ठित; अकेला और संतुष्ट है...। फिर सम आया - संतुष्ट, संतोष । जो जैसा है, जहां है वैसा ही अपने को धन्यभागी जानता है; इससे अन्यथा की कोई मांग नहीं है । जिसको अन्यथा की मांग नहीं है, उसकी जिंदगी में चिंता नहीं है। जिसको अन्यथा की मांग नहीं है, उसकी जिंदगी में कभी कोई दुख नहीं है। जैसा है, उसी से राजी । तुम कहते हो : ऐसा होगा तो मैं राजी होऊंगा। फिर तुम कभी राजी नहीं होने वाले। क्योंकि कौन तुम्हारी आकांक्षाएं तृप्त करने को है? सब अपनी आकांक्षाएं तृप्त करने में लगे हैं। और यह विराट अस्तित्व एक-एक की आकांक्षाएं तृप्त करने चले, तो कभी का बिखरकर खंडित हो जाए। लेकिन जो कहता है : जो अस्तित्व से मुझे मिले, वही मेरा सुख है; इस आदमी को दुखी नहीं किया जा सकता। जिसने अस्तित्व के साथ अपना गठबंधन बांध 305
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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