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________________ एस धम्मो सनंतनो मौन-दूसरों से संबंध न जोड़ना वाणी का, विचार का; और ध्यान-भीतर विचार की तरंग को विसर्जित करना। ये तीन उपाय हैं समाधि के। दूसरे नहीं हैं जैसे-ऐसे जीना। अपने पास कहने को भी कुछ नहीं है; बोलने को भी कुछ नहीं है-ऐसे जीना। और अपने भीतर सोचने को भी क्या है? सब कूड़ा-करकट है। इस कूड़ा-करकट को क्यों उलटते-पलटते रहना! ऐसा तीन भावों से जो भर जाए—एकांत, मौन और ध्यान-एक दिन उसके जीवन में समाधि फलित होती है। एक दिन सब शून्य हो जाता है। खयाल रखना ः एकांत में दूसरे मिट जाते हैं। मौन में शब्द मिट जाते हैं। ध्यान में विचार मिट जाते हैं। और समाधि में स्वयं का मिटना हो जाता है; शून्य हो जाता है। ___ उसने सारी बात बुद्ध को कही। उसे सुनकर बुद्ध ने उसे साधुवाद दिया और कहाः भिक्षुओ! अन्य भिक्षुओं को भी, जिन्हें मुझ पर प्रेम हो, धम्माराम के समान ही होना चाहिए। माला-गंध आदि से मेरी पूजा करने वाले मेरी पूजा नहीं करते। अपने को धोखा देते हैं। प्रत्युत जो धर्म के अनुसार आचरण करते हैं, वे ही मेरी पूजा करते हैं। आंसुओं के बहाने से कोई सार नहीं है। और फिर जो वैसा करते हैं, वे मुझे समझे ही नहीं। क्योंकि कितनी बार तो मैंने तुमसे कहा यहां सभी अथिर है। जो जन्मा है, मरेगा। जो हुआ है, मिटेगा। इस अथिर से मोह मत बनाओ। और तुमने मुझसे मोह बना लिया! जो मुझसे मोह बना लिए हैं, वे मुझे समझे नहीं। रोओ नहीं। रोने से कुछ होगा भी नहीं। बहुत रो लिए। जन्मों-जन्मों रो लिए। अब बंद करो। सोओ भी नहीं। रोना भी जाने दो; सोना भी जाने दो। अब जागो। और फिर इस गाथा को कहाः धम्मारामो धम्मरतो धम्मं अनुविचिन्तयं। धम्म अनुस्सरं भिक्खु सद्धम्मा न परिहायति। 'धर्म में रमण करने वाला, धर्म में रत, धर्म का चिंतन करते और धर्म का अनुसरण करते भिक्षु सद्धर्म से च्युत नहीं होता है।' पहले दृश्य को खूब हृदयंगम कर लें। बुद्ध ने एक दिन घोषणा की कि चार महीने और मेरी नाव इस तट पर रहेगी। फिर मेरे जाने का समय आ गया। चार महीने और इस देह में मैं टिका हूं। फिर यह पंछी उड़ जाएगा। चार महीने और तुम चर्म-चक्षुओं से मुझे देख पाओगे। फिर तो वे ही मुझे देख पाएंगे, जिनके भीतर की आंख खुल गयी है। चार महीने और मैं तुम्हें पुकारूंगा। सुन लो, तो ठीक। चार महीने बाद मेरी पुकार खो जाएगी। हां, जो मेरी पुकार सुन लेंगे इन चार महीनों में, उन्हें सदा सुनायी पड़ती रहेगी। चार महीने और 308
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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