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________________ एस धम्मो सनंतनो गया। राजा ने भगवान के चरणों में तीन बार प्रणाम कर पूछाः भंते, क्यों इसका शरीर स्वर्ण जैसा और मुख से दुर्गंध क्यों निकलती है? बुद्ध के पास जाने और बुद्ध के पास कुछ पूछने की प्रक्रिया है। बुद्ध से तुम ज्ञानी की तरह कुछ नहीं पूछ सकते हो। ज्ञानी की तरह पूछा, तो बुद्ध उत्तर भी नहीं देंगे। बुद्ध से तो झुककर पूछो, तो ही उत्तर मिल सकता है। झोली फैलाओ, तो ही उत्तर मिल सकता है। इसलिए तीन बार प्रणाम करके, तीन बार झुककर। क्यों तीन बार ? एक बार झुकने से न चलेगा? तुम्हारा भरोसा नहीं। एक बार झुको-और बिलकुल न झुको; अकड़े ही खड़े रहो। शायद दूसरी बार थोड़े और। शायद तीसरी बार झुक पाओ। भूल-चूक न हो जाए, इसलिए तीन बार। क्योंकि तुम झुको, तो ही बुद्ध उत्तर देते हैं। तुम्हारा झुकना जब दिखायी पड़ जाए, प्रत्यक्ष हो जाए, तो ही उत्तर देते हैं। क्योंकि जो जानकार है, . उसको बुद्ध उत्तर नहीं देते। ___जानकार को क्या उत्तर देना? जो निर्दोष भाव से पूछता है, जो इस बात को स्वीकार करके पूछता है कि मैं अज्ञानी हूं, आप ज्ञान बरसाएं; मैं अंधेरे में हूं, आपकी रोशनी लाएं।... __ लेकिन जो इस अकड़ से पूछता है कि रोशनी तो मेरे पास ही है। ठीक है, चलो, तुमसे भी मेल-ताल कर लें। देखें, तुम्हारे पास भी रोशनी है या नहीं? उत्तर तो मुझे मालूम ही है। तुमसे भी पूछे लेते हैं कि शायद मेल खा जाए, शायद तुम्हें भी ठीक उत्तर पता हो। अगर मुझ से मेल खा जाए, तो तुम्हारा उत्तर ठीक। अगर मेल न खाए, तो तुम्हारा उत्तर गलत। ऐसे लोगों को बुद्धपुरुष उत्तर नहीं देते। क्योंकि क्यों व्यर्थ बात करनी! इस देश में यह बड़ी प्राचीन परंपरा है कि गुरु के पास कोई जाए, तो झुका हुआ, तो ही कुछ पाएगा। झुको। झुकोगे, तो भरे हुए लौटोगे। अकड़े रहोगे, खाली के खाली लौट आओगे। ___ पूछा : भंते! भगवान! क्यों इसका शरीर स्वर्ण जैसा, किंतु मुख से दुर्गंध निकलती है? भंते भगवान का ही संक्षिप्त रूपांतरण है। अति प्रेम में भंते कहा जाता है। भगवान बड़ा शब्द है। जैसे आप अति प्रेम में तुम हो जाता है। और अति प्रेम में तू हो जाता है। ऐसे ही भगवान भंते हो जाता है। अपूर्व प्रेम से भरकर उस राजा ने, अत्यंत विनय से भरकर, बुद्ध से प्रश्न पूछा। भगवान ने अत्यंत करुणा से उस मछली की ओर देखा, और बड़ी देर तक देखते रहे। उतरने लगे उस मछली के अतीत में। पर्त-पर्त खोलने लगे होंगे उसकी अतीत स्मृतियों का जाल। कुछ खोता नहीं; तुम अपने सारे अतीत को लिए बैठे हो। तुम्हें पता न हो, 18
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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