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________________ तृष्णा की जड़ लेकिन जिसके हाथ में रोशनी है, वह तुम्हारे भीतर देख सकता है। तुम्हारी अचेतन पर्तों में जा सकता है। वह देख सकता है: पहले तुम कहां थे, क्या थे, कैसे थे? क्या किया, कैसे यहां आए? कौन तुम्हें यहां ले आया? कैसे बीज तुमने बोए थे? कैसे कर्म तुमने किए थे? क्या है तुम्हारी अतीत स्थिति? क्योंकि तुम तुम्हारा अतीत हो। तुम हो वही, जो तुमने किया, और जो तुम अतीत में रहे। ___ इसलिए बुद्ध बड़ी देर तक चुप और बड़ी करुणा से उस मछली को देखते रहे। करुणा से इसलिए कि काश्यप बुद्ध जैसे महापुरुष का साथ मिला और यह गरीब मछली, यह गरीब प्राण, यह गरीब आत्मा चूक गयी! ऐसा अपूर्व साथ कैसे चूक गया? तो महाकरुणा है उनके हृदय में। " ___बड़ी देर तक चप रहने के बाद वे बोलेः महाराज! यह मछली कोई सामान्य मछली नहीं; इसके पीछे छिपा लंबा इतिहास है। ___ हर एक के पीछे छिपा लंबा इतिहास है। कोई भी यहां नया नहीं है। तुम सब बड़े प्राचीन यात्री हो। इस रास्ते पर सदियों-सदियों चले हो। तुम कुछ नए आज चलने लगे हो संसार में, ऐसा नहीं है। अति पुरातन हो। उतने ही पुरातन हो, जितना पुरातन यह संसार है। तुम प्रथम से चल रहे हो। तुम इस संसार के साथ ही हो। अनेक-अनेक रूपों में, अनेक-अनेक ढंगों में; कभी वृक्ष, कभी पशु, कभी पक्षी, कभी मनुष्य। और घूमते रहे हो-मूर्छित। तुम्हें पक्का पता नहीं है। तुम्हें कुछ भी पता नहीं है कि तुम कहां से आए? कैसे आए? कौन हो? लेकिन बुद्धपुरुष की रोशनी में सारी पर्ते अपना राज खोल देती हैं। बुद्ध का ध्यान तुम्हारे भीतर ऐसे जाता है, जैसे एक्स-रे की किरण जाए। जो नहीं दिखायी पड़ता, वह दिखायी पड़ जाए। बुद्ध ने कहाः यह काश्यप बुद्ध के शासन में कपिल नामक एक महापंडित भिक्षु था। शासन शब्द को भी समझ लेना। बौद्ध और जैन परंपरा में राजाओं के शासन को शासन नहीं कहा जाता। उनका भी कोई शासन है? टुटपुंजिए हैं तुम्हारे राजा, तुम्हारे महाराजा, तुम्हारे राष्ट्रपति, तुम्हारे प्रधानमंत्री। बुद्ध और जैन परंपरा में शासन कहा जाता है बुद्धों का। वे ही शास्ता हैं। क्योंकि उनसे ही शासन का जन्म होता है। और अपूर्व शासन का जन्म होता है। ऊपर से कोई थोपी नहीं जाती बात, लेकिन तुम्हारे भीतर से उपजती है। एक अनुशासन पैदा होता है, जो तुम्हारी अंतरात्मा से आता है। कोई तुम्हें जबर्दस्ती नहीं करता कि तुम ऐसे हो जाओ। कोई तुम्हें मारता-पीटता नहीं, न कोई दंड देता, न कोई पुरस्कार देता। न अदालतें हैं, न सिपाही हैं। बुद्धों का शासन तुम्हारे भीतर पैदा होता है। बुद्धों के पास तुम बैठ भर जाओ कि धीरे-धीरे तुम उनके रंग में रंगने लगते। और धीरे-धीरे तुम पाते हो कि तुम्हारा आचरण बदला। और तुम्हारे बिना बदले
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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