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तृष्णा की जड़ उसका क्या होगा! और वर्षों से मछली पकड़ने बैठे हैं। अभी तक पकड़ी है नहीं मछली। अब बुद्धपुरुषों के वचन सुन लें। ये कहते हैं : छोड़ो-छाड़ो जाल; यह नदी अचिर है। यह रहने वाली नहीं। इसमें पकड़ा तो भी न पकड़ने के बराबर है। ये सब पानी के बबूले हैं। यह सब माया है।
ऐसी बात अभी मत कहो। ऐसी बात कहो ही मत। ऐसी बात सुनो ही मत। अभी तो मछली तो पकड़ो पहले, फिर देखेंगे। मछली पकड़कर सुनना होगा, सुन लेंगे। लेकिन पहले मछली पकड़ में आ जाए! ___ तो एक तो बुद्धपुरुषों के पास कोई जाता नहीं। क्योंकि लोग वहीं जाते हैं, जहां उनकी आकांक्षाएं तृप्त होने की संभावनाएं हैं। बुद्धपुरुषों के पास आकांक्षाओं से मुक्त होना पड़ता है। और मजा और विरोधाभास कि जो आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है, वही तृप्त होता है। और जो आकांक्षाओं से भरा है, वह अतृप्ति और अतृप्ति में जलता है।
तुमने नर्क में लपटों में जलने की बात सुनी है, वह नर्क कहीं और नहीं है। वह तुम्हारी आकांक्षाओं का नर्क है, जिसमें तुम अभी जल रहे हो। इस भूल में मत पड़ना कि मरकर तुम नर्क में जाओगे। तुम नर्क में हो। नर्क में होने का अर्थ इतना ही होता है : तुम्हारा मन वासना की लपटों से भरा है।
न मालूम कितने जन्म बीत गए, न मालूम कितने चक्कर इस आत्मा ने खाए होंगे! न मालूम कितनी दुर्गतियां भोगी होंगी! न मालूम कितनी पीड़ाएं झेली होंगी! न मालुम कितने उपद्रवों के बाद यह इस अचिरवती नदी में सोने की मछली हुई है। इसने सोचा भी नहीं होगा। आदमी रहकर बुद्ध नहीं मिलते, तो मछली होकर बुद्ध कैसे मिल जाएंगे!
लेकिन वह जो एक बुद्ध के पास होना हुआ था, वह जो बुद्ध के पास सांस लेना हुआ था, वह जो महापुण्य हुआ था, उसके कारण फिर-फिर आकस्मिक रूप से भी बुद्ध का मिलना हो सकता है। ___अब यह बिलकुल आकस्मिक है : मछुओं ने पकड़ा मछली को; ले गए राजा के पास। राजा को समझ में न आया; ले आए बुद्ध के पास।
अब मछली का और बुद्ध से मिलना करीब-करीब असंभव है। कैसे होगा? बुद्ध मछली नहीं पकड़ते। मछलियां बुद्ध नहीं खोजतीं। यह मिलना होता कहां? मगर यह मिलना हुआ है। ___ वह जो बीजारोपण हुआ था, अधूरा-अधूरा हुआ था यद्यपि, वह आज भी फल ला रहा है! किसी बुद्धपुरुष के पास बैठने से जो थोड़ी सी भी श्वास तुमने ली हैं उसकी हवा की, वह जन्मों-जन्मों तक तुम्हें साथ देंगी। अपूर्व, अनजाने, आकस्मिक रूप से साथ देंगी। तुम्हारे जाने-अनजाने साथ देंगी।
उस मछली ने बुद्ध को देखते ही मुंह खोला, जिससे सारा जेतवन दुर्गंध से भर
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