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________________ एस धम्मो सनंतनो क्यों मछली ने बुद्ध को देखकर मुख खोला ? याद आ गयी होगी । अवाक हो गयी होगी। मुंह खुला रह गया होगा । अरे! फिर ? ऐसे ही एक बुद्धपुरुष को कभी उसने जाना था। जाना भी था और चूक भी गयी। जाना भी था और जान भी न पायी। वही दुख तो साल रहा है। बाहर सोने की हो गयी जिसकी कृपा से, उसकी कृपा से भीतर भी सोने की हो सकती थी । पर लोग अक्सर पछताते हैं तब, जब पछताने में कुछ सार नहीं रह जाता। अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गयी खेत। रोती होगी, जार-जार रोती होगी। अचानक फिर देखकर... । : और ध्यान रखना ः बुद्धपुरुषों के रूप कितने ही भिन्न हों, उनकी देहें कितनी ही भिन्न हों, उनके चेहरे कितने ही भिन्न हों— उनका भाव एक, उनके भीतर की ज्योति एक । दीए में भेद हो सकता है। मिट्टी के दीए कई तरह के बन सकते हैं। लेकिन दीए में जो ज्योति जलती है, उसका स्वाद एक, उसका गुण एक, उसका धर्म एक । यह मछली कभी किसी एक बुद्ध के पास रही थी । अनंत बुद्ध हुए हैं। ध्यान रखना : गौतम बुद्ध ने बहुत बार अपने से पहले हुए बुद्धों की कथाएं कही हैं। अनंत बुद्ध हुए हैं। काश्यप बुद्ध हजारों साल पहले बुद्ध से हुए । उन्हीं काश्यप बुद्ध की याद आ गयी होगी - फिर दीए को जला देखकर। फिर वही सुगंध ! फिर वही रूप ! फिर वही सौंदर्य ! फिर वही प्रसाद ! फिर वही आनंद की वर्षा ! मछली का मुख खुला रह गया होगा। अवाक जब कोई हो जाता है, तो मुंह खुला रह जाता है। ठिठक गयी होगी मछली। सोचा नहीं था सपने में कि फिर ऐसे व्यक्ति के दर्शन होंगे। एक बार बुद्धपुरुष खो जाए, तो जन्म-जन्म लग जाते हैं। क्योंकि बुद्धपुरुष विरले हैं। हों भी, तो भी तुम उसके पास पहुंच पाओ, इसकी बहुत कम संभावना है। क्योंकि तुम वहां जाते हो, जो तुम्हारी तलाश है। 1 तुम राजनेता के पास जाते हो, क्योंकि पद की तुम्हें तलाश है। राजनेता तुम्हारे गांव में आए, तो तुम सब इकट्ठे हो जाते हो। कभी स्वागत करने, कभी जूते फेंकने । मगर इकट्ठे हमेशा हो जाते हो। तुम से रुका नहीं जाता। वहां तुम्हारे प्राण अटके हैं ! बुद्धपुरुष गांव में आएं भी, तो भी तुम शायद ही जाओ, क्योंकि बुद्धों से तुम्हारा क्या लेना-देना ! वह तुम्हारी आकांक्षा नहीं है। तुम वासना छोड़ना थोड़े ही चाहते हो; तुम वासना को पूरा करना चाहते हो। तुम बुद्धों से बचोगे । अगर बुद्ध रास्ते पर मिल जाएं, तो तुम बगल की गली से भाग खड़े होओगे। तुम बचोगे । ऐसे लोग बचते हैं। बचने के लिए हजार बहाने खोजते हैं। तर्क - जाल बना लेते हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें डर लगता है कि बुद्धपुरुष के पास गए और अगर कोई बात सुनायी पड़ गयी और कहीं समझ में आ गयी, तो अब तक जो-जो उन्होंने न्यस्त स्वार्थों का जाल फेंका है, अचिरवती नदी के किनारे जो वे मछली पकड़ने बैठे हैं, 16
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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