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________________ तृष्णा की जड़ की मछली सपने में नहीं देखी। राजा तो सोने की ही दुनिया में रहता था। इसे तो अकल होती! मगर कौन अपने को देखता है? अपने पर आंख ही नहीं जाती। अपने को आदमी देखता ही नहीं। __चीन में एक पुराना रिवाज था कि जब किसी कैदी को फांसी देते, तो फांसी देने के पहले उसके हाथ में आईना देते कि वह अपनी शकल देख ले। बड़ी अजीब परंपरा! काहे के लिए कोई आदमी मर रहा है, उसे तुम दर्पण दे रहे हो। यह एक बहत प्राचीन परंपरा का हिस्सा था। वह परंपरा यह कहती है कि इस आदमी ने जिंदगीभर तो अपना चेहरा नहीं देखा, अब मरने के वक्त तो देख ले। कोई अपना चेहरा देखता ही नहीं। हम दूसरों में ही उलझे रहते हैं। दूसरों की निंदा में; दूसरों की आलोचना में। कौन गंदा, कौन बुरा, कौन पापी, कौन अनाचारी, इसी में बीत जाता है समय। फुरसत कहां कि अपना चेहरा आईने में देख लें! यह राजा को भी समझ में न आया। यह बात इतनी सीधी-साफ थी; इसमें उलझन कहां है? इसमें रहस्य कहां है? राजा को तो समझ में आना चाहिए था कि बाहर मैं सोने का हूं, जैसे यह मछली सोने की है। और भीतर मेरे दुर्गंध है, जैसे इसके भीतर दुर्गंध है। बात उसे तो खुल जानी चाहिए थी! उसे भी न खुली! इस दुनिया में लोग अंधे की तरह जी रहे हैं। अपना पता ही नहीं है। दूसरों के साथ उलझे-उलझे आंखें जड़ हो गयी हैं। दूसरों को देखने में ही समर्थ हो गयी हैं। भीतर मुड़ने की कला खो गयी है। लकवा लग गया है तुम्हारी आंखों को। बस, एक ही तरफ देख पाती हैं। अब उनमें गतिमयता नहीं है, लोच नहीं है कि कभी-कभी मुड़कर अपनी तरफ भी देख लें। राजा को भी समझ में न आया। तो बुद्ध के पास ले गया। मल्लाह हों कि सम्राट, गरीब हों कि अमीर, हारे हुए लोग हों कि जीते हुए लोग, सभी को बुद्ध के पास जाना ही होगा; वहीं रहस्य के पर्दे उठ सकते हैं। यहां गरीब भी सोए हैं, अमीर भी सोए हैं। प्रजा भी सोयी है, राजा भी सोए हैं। यहां सब अंधे और अंधे हैं। यहां अंधे अंधों का नेतृत्व कर रहे हैं! कबीर ने कहा है : अंधा अंधा ठेलिया, दोनों कूप पड़त। यहां अंधे नेता हैं, अंधे अनुयायी हैं। अंधे अंधों का मार्ग-दर्शन कर रहे हैं! फिर अगर सभी कुएं में गिर गए हैं, तो कुछ आश्चर्य नहीं है। इस राजा को क्षमा नहीं किया जा सकता। लेकिन उसके बुद्ध के पास जाने में यह सूत्र है कि अंततः सभी को बुद्ध के पास जाना होगा, तो ही जीवन का राज खुलेगा। किसी बुद्धपुरुष के चरण गहने होंगे। किसी बुद्धपुरुष की छाया पकड़नी होगी। किसी बुद्धपुरुष के हाथ पकड़कर चलोगे, तो ही जीवन के उलझाव सुलझेंगे; समस्याएं समाधान में रूपांतरित होंगी। तो ही राह मिलेगी। जैसे ही मछली को बुद्ध के सामने रखा गया, मछली ने मुख खोला। 15
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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