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________________ एस धम्मो सनंतनो है। भीतर? सब रोग खड़े हैं। ऊपर मुस्कुराहटें हैं, भीतर घाव है। ऊपर बड़े सज्जन मालूम पड़ते, भीतर जंगली जानवर छिपा है। मुख में राम, बगल में छुरी! अपने ही जीवन-अनुभव से देखोगे तो पा लोगे—यह बात सच है। भीतर का भोलापन कहां मिलता? भीतर का स्वर्ण कहां मिलता? भीतर और बाहर एक हो-ऐसा आदमी कहां मिलता? भीतर और बाहर एक ही धुन बजती हो; भीतर और बाहर एक ही संगीत हो; भीतर और बाहर एक ही सुगंध हो-ऐसा आदमी कहां मिलता? . ऐसा आदमी मिल जाए, तो उसका संग-साथ मत छोड़ना। ऐसा आदमी पारस जैसा है। उसके साथ लोहा भी सोना हो सकता है। लेकिन उसके पास शरीर को ही मत रखना, नहीं तो ऊपर-ऊपर सोना हो जाओगे। उसके पास आत्मा को भी रखना। उसके चरणों में सिर ही मत झुकाना, आत्मा को भी झुका देना।। जब कभी कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए, जिसके बाहर-भीतर सब एक हो; जिसके बाहर-भीतर नाद बज रहा हो; जिसके बाहर-भीतर ओंकार की गूंज उठ रही हो; जिसके बाहर-भीतर आनंद ही आनंद हो, समाधि-समाधि के फूल-खिल रहे हों, फिर वहां शरीर को ही मत झुकाना। शरीर से ही उसके पास मत जाना। फिर आत्मा से सत्संग करना। नहीं तो जो गति मछली की हुई, वही गति तुम्हारी हो जाएगी। यही तो हो रहा है। सत्संगों में भी जाते हो तुम, ऐसा नहीं कि नहीं जाते। कभी-कभी मंदिर भी जाते हो, मस्जिद भी जाते हो, गुरुद्वारे भी जाते हो। कभी-कभी साधु-संग भी करते हो। मगर ऊपर-ऊपर से। भीतर-भीतर से अपने को बचाए रखते हो। पछताओगे कभी। बुरी तरह पछताओगे। क्योंकि सत्संग तो भीतर से होना चाहिए। देह पास हो या न हो, चलेगा। आत्मा पास होनी चाहिए। आत्मा से किसी के पास बैठ जाने का नाम ही शिष्यत्व है। ___ उस मछली का रंग तो स्वर्ण जैसा, किंतु उसके मुख से भयंकर दुर्गंध निकलती थी। यह कहानी तुम्हारी है। यह कहानी सबकी है। इन कहानियों को कभी भूलकर ऐसा मत सोचना कि ठीक है, कथाएं हैं। पुराणों की हैं। ये कथाएं तुम्हारी हैं। ये मनोवैज्ञानिक हैं। ये मनुष्य के मन की कथाएं हैं। ___ मल्लाहों ने उसे राजा को दिखाया। राजा उसे एक द्रोणी में रखवाकर भगवान के पास ले गया। उस समय मछली ने मुख खोला।। अब तुम थोड़ा सोचना : मल्लाह नहीं समझे, समझ में आती है बात। मल्लाहों ने न कभी सोना देखा, कैसे समझें? लेकिन राजा तो सोने में जीता था। राजा को भी दिखायी न पड़ा यह कि यह उसकी ही कथा है! ऊपर-ऊपर सोना था राजा के भी, भीतर-भीतर उसके भी तो दुर्गंध थी! उसको भी चमत्कार मालूम हुआ। मल्लाहों को क्षमा कर दो। क्षमा किए जा सकते हैं। कभी सोना देखा नहीं, सोने 14
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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