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________________ एस धम्मो सनंतनो बिठाया। यह तो हद्द हो गयी! पता है, उस युवक ने उस बूढ़े को क्या कहा! उस युवक ने कहाः आश्चर्य! मैं तो उस स्त्री को नदी के किनारे कंधे से उतार भी आया। आप उसे अभी भी कंधे पर लिए हुए हैं? जो कंधों पर कभी नहीं लेते, हो सकता है, कंधों पर लिए रहें। जिन्होंने कंधों पर लिया है, वे कभी न कभी उतार ही देंगे। बोझ भारी हो जाता है। सूरदास ने अगर आंखें फोड़ ली होंगी, तो जिंदगीभर कंधे पर लिए रहे होंगे। नहीं; वह कोई उपाय नहीं है। और मैं सूरदास को समझता हूं। इसलिए कहानी को कहता हूं गलत ही होगी। कहानी सही नहीं हो सकती। किन्हीं मूढ़ों ने रची होगी। उन्हीं मूढ़ों ने, जिनसे पूरा धर्म विकृत हुआ है। ये भिक्षु पांच-आंखें बंद कर रहे होंगे; कान बंद कर रहे होंगे; जबर्दस्ती अपने को किसी तरह बांध रहे होंगे। जब कोई जबर्दस्ती अपने को बांधता है, तो अहंकार पैदा होता है। अहंकार लक्षण है। अहंकार तभी पैदा होता है, जब तुम कुछ जबर्दस्ती अपने साथ करते हो और उसमें सफल हो जाते हो। जब कोई आदमी समझपूर्वक जीवन में गहरे उतरता है, तो अहंकार निर्मित नहीं होता। क्योंकि करने को वहां कुछ है ही नहीं। समझ से ही अपने आप गुत्थियां सुलझ जाती हैं। करना कुछ भी नहीं पड़ता है। जिसने जागकर शरीर के रूप को देख लिया, उसे दिखायी पड़ जाएगा, क्षणभंगुर है; पानी का बबूला है। आज है, कल चला जाएगा। अब कुछ करना नहीं पड़ता। बात खतम हो गयी। जिसने जागकर संगीत को सुन लिया, उसे साफ हो गया कि केवल ध्वनियों की चोट है। आहत नाद है। इसमें कुछ खास नहीं है; शोरगुल है। और जिसे यह दिखायी पड़ गया कि बाहर का संगीत शोरगुल है, उसे भीतर का संगीत सुनायी पड़ने लगेगा—जिसको हमने अनाहत नाद कहा है। वहां बज ही रही है वीणा। और वहां बजाने वाला स्वयं परमात्मा है। लेकिन बाहर के संगीत में जो उलझा है, उसे भीतर का संगीत सुनायी भी नहीं पड़ता। और बाहर के स्वाद में जो उलझा है, उसे भीतर के अमृत का स्वाद नहीं आता। मगर बाहर के स्वाद को दबाओगे, तो भी बाहर के स्वाद में ही उलझे रहोगे। दबाने से मुक्ति नहीं है। बाहर का स्वाद समझो। इन पांचों में एक दिन भारी विवाद छिड़ गया। ___पांचों अहंकारी हो गए होंगे। एक आंख झुकाकर चलता था। वह उसका अहंकार हो गया होगा कि देखो, मैंने रूप का जैसा संवरण किया है; ऐसा किसी ने भी नहीं किया। और बड़ा कठिन है रूप का संवरण। क्योंकि आंख पर विजय पाना सबसे बड़ी कठिन बात है। दुष्कर बात है। क्योंकि रूप का आकर्षण बड़ा प्रबल है। 296
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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