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________________ समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान डाला! पत्नी मार डाली! क्या सार है? अब तो तुम्हीं बचे, अब अपने को ही किसी दिन मार डालोगे! और तो कोई बचा भी नहीं। यह तुम्हारा क्रोध तुम्हारे परिवार को खा गया; तुम्हें भी खा जाएगा। उस दिन लोहा गरम था। चोट लग गयी। उसने कहा : क्या करूं? आप कहें। जो आप कहेंगे, करूंगा। मुनि ने कहा ः संन्यस्त हो जाओ। वह आदमी क्रोधी था। साधारण आदमी होता, तो कहताः घर जाऊं; सोचूं-विचारूं; और झंझटें हैं। वह आदमी तो क्रोधी था; जिद्दी आदमी था; हठी आदमी था। हठी आदमी के हठयोगी होने में देर कितनी लगती है! वह तो क्रोधी आदमी था और आज लोहा गरम भी था। उसने वहीं कपड़े फेंक दिए। वह नग्न हो गया। नग्न मुनि थे। उसने कहाः इसी वक्त दीक्षा दें। देर की जरूरत नहीं है। मुनि तो बहुत प्रसन्न हुए। नासमझ रहे होंगे, इसलिए प्रसन्न हुए। समझदार होते, तो देखते कि यह कृत्य भी क्रोध से भरा है। इस कृत्य में भी समता नहीं है, बोध नहीं है। यह कृत्य भी गलत है। आदमी गलत हो, तो उसके हाथ में ठीक चीजें भी गलत हो जाती हैं। और आदमी ठीक हो, तो गलत चीजें भी ठीक हो जाती हैं। इस सूत्र को याद रखना। ठीक आदमी के हाथ में गलत चीजें भी ठीक हो जाती हैं। असली सवाल हाथ का है। और गलत आदमी के हाथ में ठीक चीजें भी गलत हो जाती हैं। असली सवाल हाथ का है। कुशल आदमी के हाथ में जहर औषधि बन जाता है। अकुशल आदमी के हाथ में औषधि भी जहर हो जाती है। ____ मुनि कुछ बहुत समझदार न रहे होंगे। हो सकता है, खुद भी इसी ढंग के आदमी रहे हों। बहुत प्रसन्न हुए। आशीर्वाद दिया। और खुशी में उसको नाम दिया कि आज से तेरे जीवन की नयी शुरुआत हुई–तेरा नाम शांतिनाथ! वे थे तो क्रोधनाथ, उनका रूपांतरण हुआ तो शांतिनाथ हो गए। फिर वर्षों बीत गए। गुरु चले गए संसार से। अब तो शांतिनाथ गुरु हो गए। और बड़े क्रोधी आदमी थे, तो जैसे पहले दूसरों को क्रोध से सताया था, अब दूसरों को तो सता नहीं सकते थे; अब अपने को सताते थे। छाया में न बैठकर धूप में खड़े होते थे। सीधे रास्ते पर न चलकर, खाई-खड्डों वाले रास्ते से, ऊबड़-खाबड़ रास्ते से चलते थे। जरूरत के योग्य भोजन भी नहीं लेते थे। शरीर को सुखा डाला था। और दिगंबर जैन मुनि की दीक्षा में क्रोध को प्रगट करने के बहुत सुविधापूर्ण उपाय हैं। उनका भी उपाय करते थे। जैन मुनि के बाल बढ़ जाते हैं, तो लोंचता है। तुमने देखा, क्रोध में स्त्रियां बाल नोचती हैं! जैन मुनि के बाल बढ़ जाते हैं, तो वह लोंचता है; उखाड़ता है। और इसे देखने सैकड़ों लोग इकट्ठे होते हैं। और कहते हैं : धन्य! धन्य! साधु! साधु! बाल उखाड़ता था यह आदमी। यह प्रतीक्षा करता थाः कब बाल बढ़ जाएं और 289
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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