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________________ एस धम्मो सनंतनो में क्रोध को। तो ऊपर-ऊपर प्रगट न होगा, लेकिन भीतर-भीतर जहर की तरह तुम्हारी जीवन-रचना में फैल जाएगा; तुम्हारे रग-रेशे में प्रविष्ट हो जाएगा। इसलिए तुम्हारे तथाकथित मुनि, साधु, त्यागी अत्यंत क्रोधी मालूम होते हैं। क्रोध चाहे न करें, मगर क्रोधी मालूम होते हैं। तुम दुर्वासा को हर मंदिर में बैठा हुआ पाओगे। कारण क्या है? क्रोध चाहे न करें, लेकिन तुम उनकी भाव-भंगिमा क्रोध से भरी पाओगे। साधारण आदमी इतना क्रोधी नहीं होता, जितने तुम्हारे महात्मा होते हैं तथाकथित। साधारण आदमी तो रोज-रोज क्रोध कर लेता है, छुटकारा हो जाता है। साधारण आदमी का क्रोध तो चुल्लूभर होता है। कोई बात हुई, प्रसंग आया, क्रोध कर लिया। बात खतम हो गयी; क्रोध भी खतम हो गया। लेकिन तुम्हारे महात्मा क्रोध को इकट्ठा करते जाते हैं। चुल्लू-चुल्लू आता है, वे इकट्ठा करते जाते हैं। और बूंद-बूंद से तो सागर भर जाता है। चुल्लू-चुल्लू इकट्ठा होते-होते इतना हो जाता है कि महात्मा की पूरी जीवन-चर्या ही क्रोध की हो जाती है। क्रोध करता नहीं है, मगर क्रोध इकट्ठा होता है। और जो इकट्ठा होता है, वह ज्यादा खतरनाक है। ___ मनस्विद कहते हैं कि छोटा-मोटा क्रोध हो जाए-स्वाभाविक है, मानवीय है! लेकिन जो आदमी क्रोध को दबाता चला जाएगा, यह खतरनाक है; इससे सावधान रहना। यह किसी दिन किसी की हत्या कर देगा। किसी दिन अगर फूटा क्रोध, तो छोटी-मोटी घटना नहीं घटेगी। किसी दिन क्रोध फूटा, तो कुछ बड़ी दुर्घटना होगी। इसके पास काफी जहर है। दमन संयम नहीं है। दमन संवर नहीं है। दमन तो अपने को दो हिस्सों में विभाजित करना है, खंड-खंड कर लेना है। दमन तो एक तरह का रोग है। दमन से तो नैसर्गिक आदमी बेहतर है। लेकिन दमन से धोखा पैदा होता है कि संयम हो गया। मैंने सुनी है एक कहानी : एक आदमी महाक्रोधी था। ऐसा क्रोधी था कि एक बार क्रोध में अपने बच्चे को खिड़की से बाहर फेंक दिया; बच्चा मर गया। और एक बार अपनी पत्नी को कुएं में धक्का दे दिया, तो पत्नी कुएं में गिर गयी। ___गांव में एक जैन मुनि आए थे। तो उन्होंने इस आदमी को बुलाया। समझाया। कि पागल! यह तू क्या कर रहा है! उस दिन उसका भी घाव ताजा था। पत्नी मर गयी थी। सोचा नहीं था कि मार डाले। क्रोध की ज्वाला में घटना घट गयी थी: अपने बावजूद घट गयी थी। अब पछता भी रहा था। ऐसा भी नहीं था कि पत्नी से प्रेम न रहा हो। लगाव भी था। आज अपने ही हाथ से अपने ही प्रेम-पात्र को कुएं में ढकेल आया था। इस चोट में लोहा गरम था। मुनि ने बुलाया और कहा कि बदलो। अब यह कब तक करोगे? बेटा मार 288
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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