SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान उस रिक्तता का ही नाम समता है। उस निष्पक्षता का नाम ही समता है। तुमने अगर संसार छोड़ दिया मोक्ष को पाने के लिए, तो तुम समता को उपलब्ध न हो सकोगे। फिर झुक गए; फिर चुनाव कर लिया। बाएं झुके थे, अब दाएं झुक गए। तुम अगर स्त्री को छोड़कर जंगल भाग गए...। पहले स्त्रियों के पीछे भागते थे, अब स्त्रियों से भागने लगे—मगर समता नहीं आयी। विपरीतता आ गयी। विपरीतता में कहां समता? एक चुना था; अब उससे उलटा चुन लिया। पहले पैर के बल चलते थे; अब सिर के बल खड़े हो गए। मगर तुममें क्या फर्क आएगा इससे! तुम पैर के बल खड़े रहो कि सिर के बल खड़े रहो, तुम तुम हो। इस तरह की क्षुद्र बातों में चुनाव कर लेने से कुछ फल होने वाला नहीं है। एक क्षुद्रता हटेगी, दूसरी क्षुद्रता पकड़ लेगी। पहले धन पकड़ते थे; अब धन को देखकर कंपते हो। इस तरह तो तुम कभी भी द्वंद्व के बाहर न हो सकोगे। नहीं हो सके हो जन्मों-जन्मों में। और द्वंद्व के बाहर होने का सूत्र है : चुनो मत, समझो। देखो, गहरे देखो। आंख को पैना करो। धार रखो आंख पर। दृष्टि को निखारो। और तब तुम्हें क्या दिखायी पड़ेगा? जिसने सफलता मांगी, उसने विफलता भी मांग ली। और जिसने न सफलता मांगी, न विफलता, वह शांत हो गया। जिसने धन मांगा, उसने गरीबी भी मांग ली। और जिसने सख मांगा, उसने दख भी मांग लिया। उलटा पीछे ही चला आता है छाया की तरह लगा हुआ। तुमने प्रेम मांगा, घृणा भी मांग ली। __ मांगो ही मत। गैर-मांग की चित्त में दशा हो जाए; कोई आंधी-अंधड़ न चले; कोई तूफान न उठे; कोई लहर न बने। उस निष्कंप दशा का नाम है-सम। उसी सम से बनता है शब्द-संवर।। अब संवर को समझ लेना उचित होगा। आमतौर से लोगों ने संवर को समझा नहीं, क्योंकि वे सम को ही नहीं समझ पाए। तो संवर, नासमझी के कारण, दमन हो गया। संवर का अर्थ दमन नहीं होता। संयम का अर्थ भी दमन नहीं होता। संयम और संवर दमन से बिलकुल भिन्न हैं। दमन का अर्थ होता है-समझे तो नहीं और दबा लिया। लोगों ने कहा ः क्रोध बुरा है; सुना; शास्त्रों में पढ़ा; संतों की वाणी समझी और बार-बार सुना-क्रोध बुरा है; क्रोध जहर है; क्रोध आग है; और क्रोधी बुरा आदमी है, अपमानित होता है; अक्रोधी सम्मानित होता है। तुम्हारे मन में भी सम्मानित होने की आकांक्षा है। और तुम भी नहीं चाहते कि तुम्हें कोई बुरा समझे। और तुम भी नहीं चाहते कि दुर्जनों में गिने जाओ। तो तुमने कहाः साधेगे। क्रोध को संयम में ले लेंगे। लेकिन तुम अभी समझे ही नहीं हो, तो तुम क्रोध को साध नहीं पाओगे; संयम में नहीं ले पाओगे। सिर्फ दबाने में कुशल हो जाओगे। तुम दबा लोगे अपनी छाती 287
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy