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________________ एस धम्मो सनंतनो आखिरी प्रश्नः मैं किस बात की प्रतीक्षा कर रहा हूं, वह मुझे भी पता नहीं है। इतना ही ज्ञात है कि प्रतीक्षा है। लेकिन कभी कुछ घटता भी नहीं। और मैं बहुत अकेला हूं। मैं क्या करूं? ऐसी ही दशा है सभी की। राह देख रहे! किसकी राह देख रहे? इसका ठीक-ठीक कुछ पता नहीं। राह देखने का इतना ही अर्थ है कि कुछ कमी मालूम हो रही है। कुछ कम है। कुछ होना चाहिए था, जो नहीं है। कुछ जगह खाली है। राह देखने का इतना ही अर्थ है कि मुझे जहां होना चाहिए, जैसा होना चाहिए, वैसा नहीं हूं। तुम किसी और की राह नहीं देख रहे हो, अपने ही प्रस्फुटित होने की राह देख रहे हो। तुम्हारा फूल खिल जाए, इसकी ही राह देख रहे हो। यह घटना कहीं बाहर से नहीं घटने वाली है। कोई आने वाला नहीं है। अगर किसी और की राह देखते रहे, तो राह ही देखते रहोगे। न कभी कोई आया है, न कभी कोई आएगा। तुम्हें कुछ होना है; कोई आना नहीं है। आने को कोई है ही नहीं। तुम्हें कुछ होना है। इस भेद को समझ लेना। क्योंकि इस भेद से ही सारा फर्क पड़ जाएगा। ___अगर तुम राह देखते हो, तो करने की तो कोई जरूरत नहीं है। बैठे हैं अपने दरवाजे पर, राह देख रहे हैं! कुछ करोगे नहीं, तो कुछ होगा नहीं। राह देखना निष्क्रिय दशा है। राह देखने वाला आदमी धीरे-धीरे, धीरे-धीरे बिलकुल निष्क्रिय हो जाएगा। राह देखने में आलस्य घना हो जाएगा। राह देखने की बात नहीं है। इसलिए परम ज्ञानियों ने ऐसा नहीं कहा कि परमात्मा बाहर है। उन्होंने कहाः परमात्मा भीतर है। राह देखने से क्या होगा? राह देखने पर तो जो बाहर है, वह आता है। खुदाई करनी है अपने भीतर। अपने भीतर की सीढ़ियां उतरनी हैं। अपने भीतर के कुएं में जाना है, जल वहां है। निष्क्रिय होने से नहीं होगा। राह पर आंखें अटकाए रखने से नहीं होगा। जितने जल्दी तुम आंख बंद कर लो...। क्योंकि आंख खोलकर बाहर अगर देखते रहे, देखते रहे, तो कुछ भी न मिलेगा। बाहर कुछ है नहीं। जो मिलना है, भीतर है। संपदा भीतर है। आंख बंद करो, और फिर राह देखो। आंख बंद करो, और फिर देखो। आंख बंद करो और अपने को पहचानने में लगो। आंख बंद करो, और अपने ही भीतर के अंधेरे में टटोलो। शुरू में बहुत घबड़ाहट भी होगी, क्योंकि अंधेरा ही अंधेरा मालूम होगा। कभी गए भी नहीं हो भीतर, इसलिए भीतर अड़चन भी लगेगी। टकराओगे भी बहुत। 276
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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