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________________ भीतर डूबो जा रहा था स्नान करने। जिस कमरे से गुजरा, वहां उन्होंने गुरु-ग्रंथ-साहब रख छोड़े हैं। मैं तो जरा चौंका। गुरु-ग्रंथ-साहब के सामने ही एक भरा लोटा रखा है और दतौन रखी है। मैंने पूछाः भई, यह दतौन, यह लोटा किसलिए? तो वह गुरु-ग्रंथ-साहब के लिए सुबह दतौन करने के लिए रखा है। गुरु-ग्रंथ-साहब! न कोई साहब हैं। चलो, कोई कृष्ण की मूर्ति के सामने दतौन रख दे, तो समझ में भी आता कि चलो, कुछ तो, कम से कम मूर्ति है। अब यह तो सिर्फ किताब है! मगर मूढ़ता का कोई अंत नहीं है! गुरु-ग्रंथ-साहब दतौन कर रहे हैं! ___ मैंने कहा कुछ तो दया खाओ! गुरु-ग्रंथ पर कुछ तो दया खाओ। तुम्हारे साथ गुरु-ग्रंथ को तो न डुबाओ! तुम्हीं दतौन कर लो यही बहुत है। ___मगर यह चल रहा है। और तुम भी जब बड़े हो जाओगे, तो तुम भी अपने बेटे को उन्हीं मूर्तियों के सामने झुका जाओगे, उन्हीं मूढ़ताओं में दबा जाओगे। और कह जाओगे कि जब बड़े हो जाओगे, तुमको भी पता चलेगा। लेकिन तब तक नाक कट जाती है। फिर कौन किससे कहे? नाक-कटे लोग मंदिरों में पूजा कर रहे-मुनि हैं, संन्यासी हैं और दूसरों की नाक काटने के लिए छुरों पर धार रख रहे हैं। ___मैं तुमसे यह न कहूंगा कि तुम परमात्मा को प्रेम करो। कैसे करोगे? जिसे जाना नहीं, जिसे पहचाना नहीं, जिससे कभी कोई मिलन नहीं हुआ, जिसके हाथ में हाथ नहीं पड़ा, उसको तुम कैसे प्रेम करोगे? और प्रेम की प्यास तो कैसे हो पैदा? तो मैं तो तुमसे यह कहता हूं : जहां तुम्हारा प्रेम हो जाए, जिससे तुम्हारा प्रेम हो जाए, कंजूसी मत करना। उस प्रेम में पूरे के पूरे न्योछावर हो जाना। उस न्योछावर होने से ही तुम्हें और प्यास जगेगी। __ मनुष्य को जिसने ठीक से प्रेम किया, वह आज नहीं कल परमात्मा के प्रेम में निकल ही पड़ेगा। कि जब मनुष्य के प्रेम में इतना रस मिला, क्षणभंगुर के प्रेम में इतना रस मिला, तो शाश्वत के प्रेम में कितना रस न मिलेगा! - और जो मनुष्य में ठीक से गहरे उतरेगा, वह पाएगा कि मनुष्य ऊपर से क्षणभंगुर है, भीतर तो शाश्वत है। हैं तो सभी परमात्मा के रूप, जरा खुदाई गहरी करनी पड़ेगी। मनुष्य में प्रेम अगर तुम्हारा लग जाए...। मनुष्य को तो छोड़ो, वृक्ष से भी अगर तुम ठीक से प्रेम करो, तो वृक्ष में भी तुम्हारी गहराई बढ़ेगी और तुम एक दिन पाओगे: वृक्ष में भी वैसी ही आत्मा विराजमान है, वैसा ही परमात्मा विराजमान है। प्रेम की गहराई तुम्हें सभी जगह परमात्मा से मिला देगी। ___ परमात्मा शब्द को जाने दो। प्रेम शब्द पर्याप्त है। प्रेम से ही परमात्मा आता है। तो मैं कहता हूं : प्रेम प्रार्थना बनेगी। और प्रार्थना परमात्मा बन जाती है। 275
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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