SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो जो हुआ, सो हुआ। अब तो तुम यही कहो—इसी में सार है कि यह नाक क्या कटी, एकदम तीसरा-नेत्र खुल गया! तो जिनकी कट गयी, वे भी कहते कि तीसरा-नेत्र...! उसके शिष्य भी बढ़ने लगे। शिष्यों की भीड़ लगने लगी। और जब शिष्य बढ़ने लगे, तो और लोगों पर भी परिणाम हुआ कि जरूर कुछ मामला होना चाहिए। एक आदमी गलत हो, इतने लोग तो गलत नहीं हो सकते। ___बात यहां तक पहुंची कि खुद राजा भी...! मामला यहां तक पहुंचा। राजा के कान में भी जब खबर पहुंची, तो वह भी सोचने लगा कि अगर ईश्वर के दर्शन ऐसे हो रहे हैं, तो मुझे भी कर लेने चाहिए। नाक में क्या रखा है! गयी, तो गयी! जब इतनों की चली गयी...। और जब उसने सुना कि जिस आदमी ने इसकी नाक काटी थी, वह भी इसका शिष्य हो गया और उसने भी कटवा ली, तो फिर राजा से भी न रहा गया कि अब मामला रुकने जैसा नहीं है। और वह भी कहने लगा कि भई! होता है दर्शन तो। राजा खुद आया। वजीर जरा होशियार था। जब राजा राजी हो गया और वह आदमी छुरे पर धार रखने लगा, तो वजीर ने कहा : आप जरा दो-चार दिन रुक जाएं। मुझे जरा ठीक से पता लगा लेने दें। राजा ने कहा : अब और क्या पता लगाना! देखते नहीं, इतने लोगों की नाक कट गयी! और सब कह रहे हैं कि दर्शन हो रहा है। सब कैसे प्रसन्न मालूम हो रहे हैं! ऐसी प्रसन्नता, ऐसा आनंद! सब डोल रहे हैं। कह रहे हैं कि बड़ा मजा आया। जब इतने रस-विभोर लोग बैठे हैं—अब सोचना क्या? वजीर ने कहा : आप दो-चार दिन रुक जाएं। दो-चार दिन में हर्जा भी क्या है! दो-चार दिन के बाद मजा ले लेना। __उसने दो-तीन नककटों को पकड़ा। उनकी अच्छी पिटाई करवायी। और उनसे कहा कि तुम सच-सच कहो। जब उनकी ज्यादा पिटाई होने लगी, तो उन्होंने कहाः अब हम आपसे क्या छिपाएं! मगर हमारी तो कट ही गयी। और उस आदमी ने बड़ा धोखा किया। उस आदमी ने पहले तो काट दी, और फिर कहा : भई! अगर अब न दिखेगा, तो लोग तुम पर हंसेंगे। हमने भी सोचा कि अब अपनी कट गयी, अपनी बचाने का यही उपाय है। तुम्हारे पिता जब तुम छोटे हो, तुमसे कह रहे हैं कि जब तुम बड़े हो जाओगे, तुमको पता चल जाएगा। यही उनके पिता ने कहा था। न उनको पता चला है, न तुमको पता चलेगा। पत्थरों की मूर्तियों के सामने झुकने से क्या पता चलना है! पता चलने का उपाय ही बंद हो गया। मुर्दा शास्त्रों की पूजा करने से क्या पता चलना है ? मूढ़ता है। मैं पंजाब में एक घर में ठहरता था। सुबह उठकर मैं निकला, आंगन की तरफ 274
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy