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________________ भीतर डूबो प्रजातंत्र को नहीं। मनुष्य को प्रेम करो, समाजवाद को नहीं । ये खतरनाक शब्द हैं : समाजवाद, प्रजातंत्र, मनुष्यता, परमात्मा । इनकी आड़ में कठोर हृदय छिप जाते हैं। जैसे कोई फूलों की आड़ में पत्थर को रख दे। ये कारीगिरियां हैं, आदमी की चालाकियां हैं; ये कुशलताएं हैं, ये कूटनीतियां हैं। तो मैं तुमसे यह नहीं कहूंगा कि तुम परमात्मा को पाने की प्यास पैदा करो। यह बात इतनी मूढ़ता की है कि मैं नहीं कह सकता। कोई प्यास कैसे पैदा कर सकता है ? लगे, तो लगे । न लगे, तो प्यास कहीं पैदा होती है ? हां, प्यास लग जाए, तो पानी खोजा जा सकता है। लेकिन पानी भी सामने हो और प्यास न लगी हो, तो प्यास नहीं लग सकती । पानी देखकर भी प्यास नहीं लग सकती। और लगेगी, तो झूठी होगी। और झूठी प्यास से परमात्मा का कभी संबंध नहीं होता । तुम्हें झूठी प्यासें पैदा करने की आदत हो गयी है । बच्चा घर में पैदा होता है। मां कहती है : मुझे प्रेम कर । मैं तेरी मां हूं। मां होने से बच्चे में प्रेम पैदा होना चाहिए, ऐसी कोई अनिवार्यता तो नहीं है । बच्चा क्या करे ? वह मां पर निर्भर है : दूध इससे मिलता, सेवा इससे मिलती । और मां प्रसन्न रहे, तो उसका बचाव है। मां नाराज हो जाए, तो उसका बचाव नहीं है। तो बच्चा एक झूठ पैदा कर लेता है। वह मां को देखकर मुस्कुराता है। यह राजनीति की शुरुआत है। यह बच्चा राजनीतिज्ञ हो रहा है। यह आज नहीं कल मगरूरजीभाई देसाई हो जाएगा! यह चल पड़ा दिल्ली की तरफ। इसने यात्रा शुरू कर दी। अब चाहे अस्सी साल लगें पहुंचने में, मगर यह चल पड़ा। यह मां को देखकर हंसता है। यह झूठी हंसी इसके ओंठ पर आती है। क्योंकि यह जानता है कि मां से दूध मिलता है। अगर हंसूं तो वह जल्दी पास आ जाती है, पुलककर पास आ जाती है। हंसूं, तो जल्दी से स्तन मुंह में दे देती है। हंसूं, तो छाती से लगा लेती है। यह बच्चा जानता ही नहीं कि प्रेम क्या है। लेकिन मां इसको कोशिश कर रही है कि प्रेम पैदा हो जाए । फिर पिता कहता है कि मैं तुम्हारा पिता हूं, मुझे प्रेम करो। ये तुम्हारे भाई हैं, इनको प्रेम करो। यह तुम्हारी बहन है, इसको प्रेम करो। ये तुम्हारे फलां हैं, ये तुम्हारे ढिकां है—इनको प्रेम करो। जैसे कि प्रेम कोई सीखने की बात है ! और बच्चा सीखता चला जाता है कि ठीक है । जब सभी कह रहे हैं, तो करना ही पड़ेगा ! करेगा क्या वह ? वह सिर्फ ऊपर से धोखा देगा । पाखंड पैदा हुआ। इस पाखंड के कारण फिर असली प्रेम पैदा ही नहीं होगा। जो नकली में पड़ गया, उसका असली रुक जाता है। इसलिए दुनिया में प्रेम की इतनी बकवास है और प्रेम बिलकुल नहीं है । 271
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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