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________________ एस धम्मो सनंतनो दूं! कहीं खो न जाए मेरी संपदा! और प्रेम ऐसी संपदा है कि जितना बांटो, उतनी बढ़ती है। जितना करो, उतना तुम्हारा हृदय प्रेमपूर्ण हो जाता है। जितना उड़ो प्रेम के आकाश में, उतने ही तुम्हारे पंख बड़े और सशक्त हो जाते हैं। जितना बढ़ो प्रेम के आकाश में, उतनी ही तुम्हारी जड़ें जमीन में गहरी चली जाती हैं और जीवन के स्रोतों से तुम्हारा संबंध हो जाता है। लेकिन प्रेम में बड़ी कंजूसी है। और अक्सर लोग इस प्रेम की कंजूसी को परमात्मा के नाम में छिपा लेते हैं। मेरा अपना अनुभव यही है। सैकड़ों साधु-संन्यासियों को मैं जानता हूं। मेरा अपना अनुभव यही है कि वे आदमी को प्रेम नहीं कर सके, और इसलिए परमात्मा के प्रेम की बातें कर रहे हैं। वे कंजूस हैं, कृपण हैं। ___ जैन मंदिरों में जो जैन मुनि बैठे हैं, उनमें से बहुतों को मैं जानता हूं। हिंदू संन्यासियों को जानता हूं। तुम्हारे बड़े प्रसिद्ध मुनि और संन्यासियों को जानता हूं। और सब के भीतर देखकर मुझे जो दिखायी पड़ा है, वह इतना है कि वे आदमी को प्रेम नहीं कर सके। आदमी को प्रेम करने की क्षमता उनमें नहीं थी। इसलिए परमात्मा का नाम आड़ बन गया। इस आड़ में वे खड़े हैं। अब प्रेम नहीं कर सकते, इसका दंश भी नहीं है! प्रेम कर ही नहीं सकते, क्योंकि संसार को कैसे प्रेम करें? लोगों को कैसे प्रेम करें? हम तो परमात्मा को प्रेम करते हैं! और तुमने देखा, ये परमात्मा को प्रेम करने वाले लोग बड़े खतरनाक साबित हुए हैं। जरा सावधान रहना। जो आदमी कहे कि मैं मनुष्यता को प्रेम करता हूं, उससे जरा बचना; वह खतरनाक आदमी है। मनुष्य को जो प्रेम करता है, वह भला आदमी है। मनुष्यता कहां है, जिसको तुम प्रेम करोगे? जो आदमी कहता है : मैं मनुष्यता को प्रेम करता हूं, यह हत्यारा हो जाएगा। जोसेफ स्टैलिन ने एक करोड़ आदमी रूस में मार डाले। मनुष्यता को प्रेम! मनुष्य मार डाले एक करोड़, मनुष्यता के प्रेम में! मारना ही पड़ेगा। मनुष्यता को बचाना है, तो मनुष्यों को मारना पड़ेगा। ___ माओ-त्से-तुंग भी मनुष्यता को प्रेम करते हैं! लाखों लोग जेलों में डाले गए और मारे गए। और हिटलर भी मनुष्य के भविष्य को प्रेम करता था। सुंदर भविष्य चाहता था। महामानव पैदा हो, सुपरमैन पैदा हो, इसकी आकांक्षा से रत था। तो इस कूड़ा-कचरे को उसने साफ कर दिया, आदमी मार डाले! ईसाई, मुसलमान, हिंदू, जैन-सब लड़ते रहे हैं एक-दूसरे से। और सब कहते हैं कि परमात्मा की तलाश कर रहे हैं! क्या मामला है? कहीं कुछ भूल हो गयी है। कहीं कुछ बुनियादी चूक हो गयी है। आदमी को प्रेम करो। परमात्मा सिद्धांत है, आदमी वस्तुतः है। आदमी वास्तविकता है। मनुष्य को प्रेम करो, मनुष्यता को नहीं। मनुष्य को प्रेम करो, 270
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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