SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीतर डूबो तुम प्रेम करो : पत्नी को, बच्चों को, मित्रों को। और परिपूर्णता से करो, कंजूसी से नहीं। लोग बड़े कृपण हैं। लोग ऐसे कृपण हैं कि कहना कठिन है! कल देखा न, बुद्ध की इस कथा में : एक कंजूस मरा, सात दिन तक बैलगाड़ियों में धन ढोया गया। और दूसरा कंजूस उसका धन ढोता रहा! और उस दूसरे कंजूस को यह बात तो दिखायी पड़ी कि यह आदमी धन इकट्ठा कर-करके मर गया और कुछ न पाया। मगर यह ढो रहा है उसी के धन को! यह भी कल मरेगा, कोई और इसके धन को ढोएगा। और यह आदमी बुद्ध के पास आया कि यह बेचारा कंजूस! जिंदगीभर...। आपके इतने पास था भगवान, दान नहीं किया! धर्म-श्रवण नहीं किया। आपके दर्शन को नहीं आया कभी! यह कैसा कंजूस! और सात दिन यह राजा उसका धन ढोता रहा राजमहल में। सात दिन यह भी बुद्ध के पास नहीं आया। आता था पहले रोज. पर सात दिन भल गया। जब धन मिल रहा हो, तो धर्म को कौन याद रखता है! मुल्ला नसरुद्दीन एक टैक्सी में अपना बटुवा भूल आया। टैक्सी ड्राइवर कोई सतयुगी होगा, सीधा-सादा आदमी, उसने अखबार में खबर निकलवा दी कि मुझे एक बटुवा मिला है, दस हजार रुपए उसमें हैं। जिसके हों, वह ठीक-ठीक ब्यौरा देकर मुझसे ले जाएं। मुल्ला नसरुद्दीन गया। उसने सब ब्यौरा दिया। जांच-पड़ताल ब्यौरे की बिलकुल ठीक थी। तो उस आदमी ने बटुवा दे दिया। मुल्ला नसरुद्दीन ने जल्दी से बटुवा खोला, रुपए गिने। एक बार गिने, दो बार गिने, तीन बार गिने। वह आदमी थोड़ा चिंतित होने लगा। गरीब टैक्सी ड्राइवर। उसने कहा कि नसरुद्दीन, क्या रुपए कम हैं? आप तीन बार गिन चुके! नसरुद्दीन ने कहा : नहीं, इतने दिन तुम्हारे पास रहे, इसका ब्याज कहां है? ऐसे लोग हैं ! ऐसी अकृज्ञता है! धन्यवाद की तो बात दूर, इसका ब्याज कहां है! ऐसी एक कहानी और मुल्ला नसरुद्दीन के संबंध में मैंने सुनी है। उसका छोटा बेटा नदी में नहाने गया और नदी में डुबकी खा गया। कोई आदमी दौड़ा, उसने उसके बेटे को बचाया। मुल्ला नसरुद्दीन के घर ले गया। बेटे को जाकर घर पहुंचाया और कहा कि यह डूबता था, बामुश्किल बचा पाया। सम्हालिए अपने बच्चे को। मुल्ला ने अपने बेटे को गौर से देखा। और कहाः वह तो ठीक है। बेटा तो ठीक है, लंगोटी कहां है? वह जो लंगोटी पहने था, वह नदी में कहीं बह गयी। अब जैसे इस आदमी का कसूर है कि लंगोटी कहां! बेटा बचा, इसकी खुशी नहीं; लंगोटी के जाने का दुख है। आदमी कृपण है-सब आयामों में। प्रेम में भी बड़ा कृपण है। लोग प्रेम भी ऐसा करते हैं कि कहीं ज्यादा न हो जाए! कि कहीं ऐसा न हो कि मैं ज्यादा प्रेम कर 269
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy