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________________ एस धम्मो सनंतनो से ही परमात्मा का रास्ता निकल सकता था। तूने किसी से प्रेम ही नहीं किया, तो तूने रास्ता ही तोड़ दिया। तुम परमात्मा को छोड़ ही दो। अब तुम्हारा परमात्मा से प्रेम नहीं है और परमात्मा की प्यास नहीं, तो अब कोई प्यास तो पैदा नहीं की जा सकती। और अगर पैदा की जाए, तो झूठी होगी, कृत्रिम होगी। अब जैसे किसी आदमी को प्यास नहीं लगी है। अब क्या करो? समझाओ उसको कि लगाओ प्यास! शास्त्रों के उल्लेख दो कि प्यास बड़ी ऊंची चीज है, लगनी चाहिए। उसका कंठ सूखा नहीं है। उसको प्यास लगी नहीं है, तो क्या करोगे! कितनी ही चीख-पुकार मचाओ...। ___ अगर ज्यादा जोर-जबर्दस्ती करोगे उस पर, और नर्क का डर दिखलाओगे कि अगर प्यास नहीं लगी तो नर्क में सड़ोगे, और अगर प्यास लगी तो स्वर्ग में सुख भोगोगे, तो वह आदमी सोचेगा : चलो, लगाओ प्यास! लगाओ प्यास का क्या मतलब होगा? वह झूठ ही कहने लगेगा कि हां, मुझे प्यास लगी है। बड़ी प्यास लगी है। मेरा कंठ जल रहा है! और वह जानता है कि न कंठ जल रहा है, न प्यास लगी है। ऐसे ही मंदिरों में लोग खड़े हैं हाथ जोड़े—कि हे प्रभु, दर्शन दो। कंठ-मंठ में कहीं कोई आग नहीं लगी है। फिर कहते हैं : हमारी प्रार्थनाएं सुनी नहीं जातीं। प्यास ही झूठी है। और इसका जिम्मा किस पर है? ये तुम्हारे साधु-संत जो तुम्हें समझाते हैं कि परमात्मा की प्यास जगाओ, उन पर जिम्मा है। ___प्यास कहीं जगायी जाती है? फिर क्या उपाय है ? उपाय यही है कि जिस बात की प्यास है, उसी से शुरू करो। ___अगर तुम्हें मुझसे प्रेम है, तो चलो, यही सही। इसी प्रेम में पूरे डूबो। इस डुबकी से ही शायद और बड़े प्रेम की प्यास लगे। अनुभव चाहिए न! तुम्हें एक बूंद की प्यास है, सागर की प्यास नहीं है। मैं कहता हूं : एक बूंद ही पीयो। शायद एक बूंद से जो तृप्ति मिले...। बूंद तो है, कोई महातृप्ति नहीं मिलेगी। लेकिन कुछ तृप्ति मिलेगी। कंठ शीतल होगा। रस जगेगा। सोचोगेः दो बूंद मिल जाएं, तो अच्छा। दस बूंद मिल जाएं, तो अच्छा! प्रेम के अनुभव से ही आदमी परमात्मा के अनुभव तक जाता है। परमात्मा परम प्रेम है। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है। परमात्मा प्रेम की आत्यंतिक संभावना है, आखिरी मंजिल है। तुम प्रेम तो करो। तुम किसी को भी प्रेम करो। . इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि कहीं भागना मत संसार को छोड़कर। क्योंकि संसार छोड़कर भागे कि तुम दरवाजा ही छोड़कर भाग गए.मंदिर का। फिर तुम लाख सिर पटको कहीं भी, और कोई दरवाजा नहीं है। यह संसार दरवाजा है। यहीं से परमात्मा के मंदिर का प्रवेश है। 268
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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