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________________ भीतर डूबो तुम परमात्मा से प्रेम कैसे कर सको - मैं यह अपेक्षा भी नहीं करता। मेरी अपेक्षा कुछ और है। जीसस ने कहा है, परमात्मा प्रेम है। मैं तुमसे कहता हूं, प्रेम परमात्मा है । तुम प्रेम करो; परमात्मा को छोड़ो अभी । जैसे-जैसे तुम्हारा प्रेम सघन होगा, वैसे-वैसे तुम्हें परमात्मा की प्रतीति होनी शुरू होगी। प्रेम की सघनता में तुम्हें परमात्मा के दर्शन और झलकें मिलेंगी। अब तुम उलटी बात मांग रहे हो। तुम मांग रहे हो कि पहले मुझे परमात्मा से प्रेम करना है। और परमात्मा का पता नहीं है । हो कैसे ? इन वृक्षों से हो सकता है। फूलों से हो सकता है। चांद-तारों से हो सकता है। मनुष्यों से हो सकता है। जिनका बोध तुम्हें हो रहा है, उनसे हो सकता है। परमात्मा से कैसे हो ? और जो कहते हैं, उनको परमात्मा से प्रेम है, उनको अभी पता नहीं है कि वे क्या कह रहे हैं। धोखा ही दे रहे हैं । सौ में निन्यानबे आदमी, जो कहते हैं, उनको परमात्मा से प्रेम है, उनको कुछ पता नहीं है। सच तो यह है कि परमात्मा से तो दूर, परमात्मा के नाम पर उन्होंने आदमियों से भी प्रेम करना बंद कर दिया है। यह तरकीब मिल गयी उनको — कि हमको तो परमात्मा से प्रेम है। आदमियों से क्या करना ! उन्होंने तो यह तरकीब बना ली - क आदमियों से प्रेम छोड़ना पड़ेगा, तब परमात्मा से प्रेम होगा। • परम भक्त रामानुज के पास एक आदमी आया । और उसने कहा कि मुझे परमात्मा को पाने का मार्ग बता दें। मैं परमात्मा को पाने के लिए दीवाना हूं। मुझे परमात्मा चाहिए ही चाहिए। मैं सब दांव पर लगाने को तैयार हूं। रामानुज ने उस आदमी को देखा और कहा कि मैं तुमसे कुछ प्रश्न पूछूं ? तुमने कभी किसी को प्रेम किया? उस आदमी ने कहा: आप फिजूल की बातें न पूछें। मैं इस तरह की झंझटों में पड़ा ही नहीं । मैंने कभी किसी को प्रेम नहीं किया। मुझे तो परमात्मा से प्रेम है। मुझे तो आप परमात्मा का रास्ता बता दें। मैं सब दांव पर लगाने को तैयार हूं। - रामानुज की आंखें गीली हो गयीं। उन्होंने कहा : मैं तुझसे फिर एक बार पूछता हूं | जरा खोजबीन कर अपने मन में । कभी तो किसी को किया होगा- - मां को, पिता को, भाई को, बहन को, किसी स्त्री को, किसी मित्र को – किसी को भी प्रेम तूने कभी नहीं किया? उसने कहा: मैं इन झंझटों में, संसार की झंझटों में मैं पड़ता ही नहीं। यह सब असार है। कौन किसकी माता ? कौन किसका पिता ? कौन किसका भाई ? कौन किसकी पत्नी ? यह सब असार है, यह सब माया है । आप जैसे संत पुरुष और ये कहां की बातें पूछ रहे हैं ! मुझे तो परमात्मा से प्रेम है। रामानुज का वचन बड़ा महत्वपूर्ण है। रामानुज ने कहा : फिर मैं तुझे साथ न दे सकूंगा । सहारा न दे सकूंगा। मैं असहाय हूं । तूने किसी को प्रेम किया होता, तो प्रेम 267
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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