SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीतर डूबो सुबह बाजार में पड़ा था। वह घबड़ा गया। उसने पीछे लौटकर देखा, मौत खड़ी थी! और मौत ने कहा ः धन्यवाद तो मुझे भी देना चाहिए तेरे घोड़े को, क्योंकि तेरी मौत होनी थी दमिश्क में और मैं डरी थी कि दमिश्क तक तू पहुंच पाएगा कि नहीं। मगर घोड़ा तेज है और ठीक समय पर ले आया; अभी सूरज ढल ही रहा है। सुबह भी इसी वजह से मैं तेरे कंधे पर हाथ रखी थी कि मैं बड़ी हैरान थी कि अब होगा कैसे यह! दमिश्क तू पहुंचेगा कैसे! और मौत वहां होनी है। मैं निश्चित नहीं थी; चिंता से भरी थी। मगर घोड़ा तेरा तेज है। घोड़ा तुझे समय के पहले ठीक जगह पर ले आया! कहां जाओगे? कहीं भागो, दमिश्क पहुंच जाओगे। जहां मौत होनी है, वहां पहुंच जाओगे। गरीब भी पहुंच जाते, अमीर भी पहुंच जाते। पैदल चलते, वे भी पहुंच जाते; घोड़ों पर जाते, वे भी पहुंच जाते। हवाई जहाजों में उड़ते, वे भी पहुंच जाते। ___मौत तो होनी ही है, फिर भय क्या! भय में आकांक्षा है कहीं कि न हो। सब की हो, मेरी न हो कम से कम! मुझे अपवाद बना लिया जाए। मैं बच जाऊं तो भय है। भय को समझो। ___ मौत के कारण भय नहीं है। तुम्हारा जीवन अमर हो जाए-इस भाव के कारण भय है। और यहां कोई चीज थिर नहीं। नदी की धार है। सब बह रहा है। जन्म हुआ, मृत्यु भी होगी। आज जो मिला है, कल छीन भी लिया जाएगा। यहां सब अमानत है; तुम्हारा यहां कुछ भी नहीं है। इस सत्य को देखोगे, तो भय अपने आप विसर्जित हो जाएगा। ___ 'मृत्यु से तो भयभीत है ही, जीवन से भी भयभीत हं। मेरे लिए क्या मार्ग है?' भय जब ठीक से समझा जाएगा, तो तुम ऐसा न पाओगे कि लोग मौत से ही भयभीत हैं। जो मौत से भयभीत हैं, वे जीवन से भी भयभीत होंगे ही। क्यों? क्योंकि यह जीवन ही तो है, जो मौत लाता है। मौत आती कहां से है? मौत जीवन के कंधे पर चढ़कर आती है। इसलिए जो आदमी मौत से भयभीत है, वह जीवन से भी भयभीत रहेगा। वह जी भी नहीं सकता ठीक से, क्योंकि वह जानता है कि जीवन से ज्यादा दोस्ती करनी ठीक नहीं, यह मौत में ले जाएगा। इस घोड़े पर सवारी ठीक नहीं, यह गड्ढे में गिराएगा। और मौत सदा जीवन के ही द्वार से आती है। इसलिए लोग जीवन से भी डरे हए हैं। कौन जी.रहा है ? घसिट रहे हैं लोग! कुनकुने-कुनकुने जी रहे हैं। जी कौन रहा है? दिल भरकर नहीं जी पाते, क्योंकि हर बार जब दिल भरकर जीने लगते हो, तभी लगता है कि मौत करीब आयी। जहां दिल भरकर जीने की चेष्टा की, वहीं खतरा है। और खतरा एक ही है-मौत का। इसलिए तो लोग दुकानदार हो गए हैं, लोग सौदागर हो गए हैं। लोग कौड़ियां इकट्ठी करते रहते हैं। दांव नहीं लगाते कभी। और तुम्हारा जीवन, बिना दांव के, जीवन ही नहीं है। 261
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy