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एस धम्मो सनंतनो
तो नदी में बहता हुआ जल और तुम्हारी बोतल में बंद जल में उतना ही फासला है, जितना असली फूल और नकली फूल में है। असली फूल की खूबी क्या है ? खूबी यही है कि वह प्रतिपल बह रहा है। सुबह जो फूल खिला था, वह सांझ तक
बह गया ।
बुद्ध ने कहा है : सब सतत प्रवाह है। यहां विश्राम नहीं है। यहां विराम नहीं है। आधुनिक विज्ञान इस बात से राजी है। पश्चिम के बहुत बड़े विचारक एडिंग्टन ने लिखा है कि दुनिया की भाषाओं में एक शब्द बिलकुल झूठा है; वह शब्द है — रेस्ट | ऐसी कोई चीज होती ही नहीं । विराम होता ही नहीं । विश्राम होता ही नहीं । सब चीजें चल रही हैं, प्रतिपल चल रही हैं।
तुम सोचते हो, जब आदमी मर गया, तो सब ठहर गया ! कुछ भी नहीं ठहरा। तब भी प्रवाह हो रहा है।
तुम्हें पता है ! आदमी के मर जाने के बाद भी दाढ़ी और बाल बढ़ते रहते हैं, नाखून बढ़ते रहते हैं ! तुम्हें पता है ! आदमी मर जाता है, तो आदमी मर गया होगा, लेकिन उसके भीतर हजारों-लाखों जंतु हैं, वे सब गतिमान हैं ।
आदमी मर गया; तुमने उसकी लाश जाकर दबा दी मिट्टी में; लेकिन अभी प्रवाह चल रहा है। हड्डियां गलेंगी वर्षों लगेंगे। मिट्टी फिर मिट्टी बनेगी। हर चीज फिर वापस अपने स्रोत में गिरेगी। प्रवाह जारी है।
और जो आज तुम्हारी हड्डी है, वह कल किसी और की हड्डी बनेगी। और आज जो तुम्हारे भीतर खून की तरह बह रहा है, कल किसी और के भीतर खून की तरह बहेगा। जो अभी वृक्षों में हरा है, कल तुम्हारा खून होगा। आज तुममें जो खून है, कल वृक्षों की जड़ों में खाद बनेगा ।
सब चल रहा है, कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है। एक चीज दूसरे में बदलती जाती है; रूपांतरण होता है। न तो कोई चीज कभी पैदा होती है, न कोई चीज कभी वस्तुतः समाप्त होती है। यात्रा है । न कोई प्रारंभ है, न कोई अंत है।
नदी कहां प्रारंभ होती है— बता सकते हो ? कहोगे हां, बता सकते हैं। गंगोत्री गंगा शुरू होती है।
गंगोत्री में शुरू नहीं होती । आकाश में बादल घिरते हैं, उनसे जल बरसता है, तो गंगोत्री में जल आता है। गंगोत्री से कैसे शुरू होगी ?
तो शायद तुम कहो कि बादलों में शुरू होती है । बादलों में शुरू नहीं होती । क्योंकि समुद्र से जब तक बादल न उठें, जब तक समुद्र से भाप न उठे, और सूरज की किरणों पर पानी चढ़कर आकाश में न जाए, तब तक बादल रिक्त हैं। बादलों में क्या रखा है ? बादल हैं ही क्या अगर समुद्र का सहारा न हो ?
तो समुद्र में गंगा शुरू होती है ? लेकिन समुद्र में तो गंगा आकर गिरती है । वर्तुलाकार है ।
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